SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युक्त होती है तब शेष चार विजयों में 4 वासुदेव 4 बलदेव होते है लेकिन एक ही विजय में चक्रवर्ति और वासुदेव दोनों साथ में नहीं होते हैं। इस नियम से गिनती करना। 7. पांडुकवन में 4 अभिषेक शिला मेरु पर्वत के शिखर पर पांडुकवन नामक वन है उसमें 500 यो. लंबी, 250 यो. चौडी, 4 यो. जाडी (ऊंची) ऐसी अर्जुन (श्वेत) सुवर्ण की 4 महाशिलाएं चार दिशाओं में हैं। उन शिलाएं पर उस-उस दिशा में जन्मे हुए तीर्थंकरों का जन्माभिषेक होता है। 8.2 महावृक्ष भूमिकूट के वर्णन में कहे हुए 1) जंबुवृक्ष जो उत्तरकुरु में और 2) शाल्मलीवृक्ष जो देवकुरु क्षेत्रमें ऐसे दो वृक्ष है। वे दोनों 8 यो. ऊंचे 0 // यो. गहरे और 8 यो. के विस्तारवालें हैं। जंबूवृक्ष पर जंबूद्वीप का अधिष्ठायक अनादृत देव तथा शाल्मलीवृक्ष पर गरुड देव रहता है। दोनो वृक्ष पृथ्वीकायमय रत्न के शाश्वत है। परन्तु उसका आकार वृक्ष का होने से उन्हे वृक्ष कहते है। उस वृक्ष के आसपास दूसरे ऐसे अनेक छोटे-बडे वृक्ष हैं / 9.34 राजधानी .. चौंतीस विजयों में अयोध्या आदि नामवाली 34 मुख्य नगरीयां है, वे 34 राजधानीयां कहलाती है। .. .. . 10.90 कुंड 14 महानदीयां जिस जिस पर्वत पर से निकलती है उन पर्वत के नीचे उस-उस नदी के नामवाले प्रपातकुंड है। जिसमें नदी का प्रवाह इसी कुंड पर से गिरता है बाद में वह बाहर निकलता है वे 14, तथा महाविदेह की 64 विजयगत नदीयां और 12 अन्तर्नदीया जो निषध और नीलवंत पर्वत के पासमें रहे हुए कुंड में से निकलती है वे 76+14=90 कुंड हैं। लघु संवाहणी सार्थ (185) परिशिष्ट
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy