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________________ वह• समयक्षेत्र 4500000 (= पैंतालीस लाख) योजन प्रमाण है। इसका दूसरा नाम * मनुष्यक्षेत्र भी है। यह समयक्षेत्र * पांचो मेरु के सिवाय सभी पर्वत (उपलक्षण से भूमिकूट पर्वत भी) अपनी-अपनी ऊंचाई से भूमि में चौथे भाग जितने गहरे दटे हैं। * प्रश्न :- पर्वतों की गहराई और ऊंचाई के योजन अलग-अलग गिनना, अथवा साथ में गिनना? उत्तर :- पर्वतों की गहराई के योजन और ऊंचाई के योजन अलग गिनना / जो पर्वत 100 योजन ऊंचे है वे भूमि में 25 योजन गहरे जानना। क्योंकि शास्त्र में फूटनोट :. 1 लाख योजन का जंबूद्वीप है उसके चारो और 2 लाख योजन का लवणसमुद्र, उसके चारो ओर 4 लाख योजन का धातकी खंड, उसके चारो ओर 8 लाख योजन का कालोदधि समुद्र और उसके चारो ओर सोलह लाख योजन का पुष्करवरद्वीप का आधा भाग याने 8 लाख योजन का आधा पुष्करवर द्वीप हैं / इस प्रकार दो समुद्र और ढाई द्वीप है / उनका 1+2+4+8+8+8+8+4+2=45 लाख योजन होता है। ढाईद्वीप में ही मनुष्य रहते है और जन्म-मरण होता है ढाईद्वीप के बाहर लब्धिधारी मनुष्य का गमनागमन है लेकिन जन्म-मरण-निवासादि नहीं है इसलिए ढाईद्वीप का नाम मनुष्यक्षेत्र ___पांचों मेरु में जंबुद्वीप के मेरु की ऊंचाई 99000 योजन और गहराई 1000 योजन है। जिससे मेरु पर्वत 100000 (एक लाख) योजन का है। और दूसरे दो द्वीप के चार मेरु की ऊंचाई 1000 योजन की गहराई युक्त 85000 योजन का है। 84000 + 1000 = 85000 योजन / . गाथा में समयक्षेत्र के पर्वत ऐसा कहने से समय क्षेत्र बाहर पर्वतों की गहराई के बारे में "ऊंचाई का चौथा भाग की गहराई” का नियमित नियम नहीं है क्योंकि समयक्षेत्र के बाहर * (मनुष्यक्षेत्र की तरह अनेक पर्वत न होने से) 'पर्वत नही है ऐसा कहा है। और मानुषोत्तर, कुंडल रुचक, अंजनगिरि, दधिमुख, रतिकर तथा इन्द्रों का उत्पात पर्वत आदि जो पर्वत हैं। उसमें मानुषोत्तर, रतिकर उत्पात पर्वत ऊंचाई के चौथे भाग की गहराईवाले और शेष 1000 यो. की गहराईवाले हैं। कुंडल, रुचक और अंजनगिरी मूल से 85000 यो. ऊंचे हैं। दधिमुख मूल से 65000 यो. ऊंचा है / इत्यादि विशेषता होने से 'मंदर-विहूणा उवगाढा उस्सेह चउत्थ भायम्मि', यह वाक्य समयक्षेत्र में ही संभवित है। इसलिए गाथा में समय क्खित्तम्मि' पद है। लघु संग्रहणी सार्थ (181) पर्वतों की भूमि में गहराई।
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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