SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विशेषार्थ : समझने योग्य यह है कि - यहां कुरुक्षेत्र की 84000 नदीओ की। जगह 6 अंतरनदीयों के परिवार की 84000 नदीयां गिनी है। जिससे बहुत . योजन तक कुरुक्षेत्र से होकर ये दोनो महानदी बहती हुई होने पर भी (कुरुक्षेत्र में ) एक भी नदी इन नदीयों से नहीं मिलती ऐसा अभिप्राय प्रगट होता है और यहीं मतान्तर है। ____ इस मतांतर का मुद्दा यह है कि देवकुरु क्षेत्र और उत्तरकुरु क्षेत्र की चोराशी, . . चोराशी हजारकी संख्या कौनसे मद्दे पर ग्रहण करनी ? हरेक अंतरनदीयों का 14000 परिवार गिनने से उनका 84000 की संख्या होती है। दूसरी तरह से विचार करे तो इन अंतरनदीयों को विजयों की चौदह चौदह हजार के परिवार की नदी के रूप में माने तो अंतरनदियों का अलग परिवार कहां से हुआ ? पांच लाख बत्तीस बजार के बारे में दोनों मत का एक ही अभिप्राय है सिर्फ चौरासी हजार के संख्या की गिनती किस तरह करना, उनके बारे में मतभेद है। गाथा:सीयासीओयाविय, बत्तीससहस्सपंचलक्खेहिं। सव्वेचउदसलक्खा ,छप्पन्नसहस्समेलविया|२५|| संस्कृत अनुवाद सीताशीतोदाऽपिच, द्वात्रिंशत्सहस्राधिकपञ्चलक्षैः। सश्चितुर्दशलक्षाणि, षट्पञ्चाशत्सहस्राणिमेलिताः||२५|| * फूटनोट :कुरु की चौराशी हजार नदी' वाला मत ज्यादा ठीक लगता है। क्योंकि अंतरनदीयों का प्रवाह एक समान है। यदि उसमें दूसरी नदीयां मिलती हो तो उसका प्रवाह अधिक चौडा होता जाये और वे नदीयां वैताढय की तरह दो विजयों की सीमा में हैं। विजय की चौदह हजार परिवारवाली दो नदीयां सीधी उत्तर-दक्षिण बहती हुई सीता-सीतोदा में मिलती है। इसलिए वे वास्तविक रूपसे अंतरनदी के परिवार में नहीं है। | लघु संग्रहणी सार्थ १७४)श्रीता-सदा के परिवार केशल Dillide
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy