________________ उस प्रपात कुंडों के बिच में एक ऋषभकूट आया है। हरेक विजय के छह (6) खंडों में से चौथे खंड में ऋषभकूट होता है। वहां पर ऋषभनाम का अधिष्ठायक, देव होता है, इसलिए उसका ये नाम हैं। जब चक्रवर्ति चौथा खंड का दिग्विजय करके लघु हिमवंत का हिमवंत देव को जीतकर वापस लौटते है तब ऋषभकूट को अपने रथ की नोंक (अणी) से तीन बार स्पर्श करते है और काकिणी रत्न से पूर्व दशिा में अपना नाम लिखते है। 5. करिकूटों :- महाविदेह क्षेत्र में मेरु की तलहटी में भद्रशाल नामक वन में दिशा और विदिशाओं के मध्य में आठ अंतर में आठ हाथी के आकार के भूमि पर शिखर है। उनको दिग्गजकूट, हस्तिकूट, करिकूट कहते है उस पर उस-उस कूट के नाम वाले आठ देवभवन है। ये आठ भूमि कूट मेरु के पास में भद्रशालवन में होने से गाथा में मेरु कूट कहां है। 6. जंबूकूट :- महाविदेह क्षेत्र के उत्तरकुरु क्षेत्र में जंबूद्वीप के अधिष्ठायक अनादृत देव को निवास करने योग्य छोटे-बडे जंबूवृक्षों का परिवार वाला महान जंबूवृक्ष है। उसके आस-पास 100-100 योजन के विस्तारवाले तीन वन लपेटे हुए (घिरे हुए) हैं। उसके पहले वन में आठ विदिशाओं में जंबूनद सुवर्णमय ऋषभकूट जैसे 8 भूमिकूट पर्वत है, उन सबके ऊपर 1 गाउ लंबे, 0|| गाऊ चौडे और कुछ न्यून (कम) 1 गाऊ ऊंचे शाश्वत सिद्धायतन है। 7. शाल्मलिकूट :- गरुडवेग देव को निवास योग्य जंबूवृक्ष जैसा ही शाल्मलिवृक्ष देवकुरु में है। उसके पहले वन में रूप्यमय शाल्मलिकूट है। उसका स्वरूप जंबूकूटों की तरह ही है, ये सभी देवकुरु में होने से गाथा में देवकुरु कहा है। .. ... 8. हरिकूट और हरिस्सहकूट :- ये दो सहस्रांक कूट, अनुक्रम से विद्युत्प्रभ और माल्यवंत गजदंत के नव कूटों में गिने है। ये दोनों कूट पर्वतपर है, परन्तु दोनो और से 250-250 योजन निराधार स्थिति में है। इसलिए इनकी चौडाई भी 1000 योजन है। लघु संग्रहणी सार्थ (159) भूमि कूटों