SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __ नाम | कहां पर है | आकार | ऊंचाई चौडाई १.चित्रकूट 1-2 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो. तक 500 योजन २.ब्रह्मकूट |3-4 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो. तक 500 योजन 3. निलिनिकूट |5-6 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो. तक |500 योजन ४.अंकुशैल 7-8 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा 400/500 यो. तक | 500 योजन ५.त्रिकूट 9-10 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो. तक 500 योजन ६.वैश्रमण |11-12 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो. तक 500 योजन 7. अंजन |13-14 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा 400/500 यो. तक |500 योजन ८.मालंजन |15-16 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो. तक |500 योजन ९.अंकावती |17-18 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो. तक | 500 योजन 10. पद्मावती |19-20 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो. तक | 500 योजन ११.आशिविष |21-22 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो. तक 500 योजन 12. सुखौय |23-24 विजयकेबीचमें | उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो. तक 500 योजन 13. चंद्रकूट 25-26 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो.तक |500 योजन १४.सुरकूट |27-28 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो. तक | 500 योजन 15. लागकूर 29-30 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो. तक 500 योजन १६.देखकूट |31-32 विजयकेबीचमें उत्तर-दक्षिणलंबा |400/500 यो. तक |500 योजन जिस तरह विजयो आमने-सामने है उसी तरह ये पर्वत भी आमने-सामने आते हैं। अर्थात् एक पर्वत निषध के पास से निकलकर उत्तर की ओर जाता है। सामनेवाला पहाड नीलवंत के पास से शुरु होकर दक्षिण की ओर जाता है। दोनों की शुरुआत में ऊंचाई 400 यो. है और आगे बढ़ते-बढते अंत में 500 यो. की ऊंचाई होती हैं। इसलिए अश्व के डोंक (गर्दन) की तरह आकार होता है तब ऐसा लगता है कि जैसे दोनों पर्वत आमने सामने खुल्ली छाती करके आलिंगन करने के लिए आते हो, अथवा विजयों की मर्यादा बनाकर रक्षा करने के लिए छाती के आकार से खडे हो ऐसे दिखते हैं इसलिए उनका नाम वक्षस्कार पर्वत है वक्ष = छाती, सीना। 00 यो. वक्षस्कार पर्वत 500 यो. 500 यो. वक्षस्कार पर्वत 400 यो. | लघु संग्रहणी सार्थ 146 16 वक्षस्कार
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy