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________________ महाहिमवंते- महाहिमवंत पर्वत में | हरिवासे- हरिवर्ष क्षेत्र में खंडाइं- खंड शब्दार्थ (गाथा ५):निसढे- निषधपर्वतमें से विदेहे- महाविदेह क्षेत्र में मिलिया- सब मिलकर ति- तीन तेसट्ठी- त्रेसठ खंड राशि-राशि, अंकसमूह .. बीय पासे अवि- दूसरी ओर भी | | पिंडे- इकट्टे करने पर चउसट्ठी- चोसठ खंड उ- और (छंद पूर्ति के लिए) उ- और. णउअसयं- एकसो नब्बे (190) गाथार्थ : खंडो- भरतक्षेत्र का एक, हिमवंत पर्वत के दो, हिमवंत क्षेत्र के चार, महाहिमवंत पर्वत के आठ, हरिवर्ष क्षेत्र के सोलह, और निषध पर्वत के बत्तीस, ये सब मिलकर त्रेसठ, दूसरी ओर भी इस तरह सठ, तथा विदेह के चोसठ - (63 + 63 + 64 = 190) एक सो नब्बे होते है। विशेषार्थ :खंड संख्या क्षेत्र व पर्वत का नाम | खंड संख्या क्षेत्रवपर्वत का नाम 1 ('.266/19) भरत क्षेत्र 1 (5265/19) ऐरावत क्षेत्र 2 (1052 12/19) हिमवंत पर्वत / 2 (1052 12/19) शिखरी पर्वत 4 (21055/19) हिमवंत क्षेत्र | 4 (21055/59) हिरण्यवंत क्षेत्र 8 (4210 10/19) महाहिमवंत पर्वत | 8 (4210 10/19) रुक्मि पर्वत 16 (84211/19) हरिवर्ष क्षेत्र / 16 (84211/19) रम्यक् क्षेत्र 32 (16842 2/19) निषध पर्वत / / 32 (16834 2/19) नीलवंत पर्वत 63 64. 336844/19 - महाविदेह क्षेत्र | लघु संग्रहणी सार्थ. (132) गणित के चिह्नों की जानकारी
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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