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________________ शब्दार्थ :णउअ- नब्बे (90) से अधिक | भाइए- भाजित करने पर सयं- शत या सो (100) लक्खे- एक लाख (योजन) को भरह- भरतक्षेत्र के गुणं- गुणने पर पमाणेण-प्रमाण से गाथार्थ :___भरतक्षेत्र के प्रमाण से एक लाख को भाजित करने पर एक सो नब्बे (190) खंड होते हैं। या एक सो नब्बे को भरत के प्रमाण से गुणा करने पर एक लाख होता है। विशेषार्थ : 5266/19 योजन की चौडाईवाले भरत और ऐरावत क्षेत्र ये दो छोटे क्षेत्र है। भरत के माप को एक खंड गिने तो ऐसे 190 खंडो का जंबुद्वीप होता है। ' 526 योजन 6 कला को 190 से गुणा किया जाय तो 526 6/19X 190= 1,00,000 योजन का जम्बूद्वीप होगा। अथवा 1,00,000 योजन को 526 योजन 6 कला से भाजित किया जाय तो 1,00,000 526-6/ 19 = 190 / अथवा 1,00,000 2 190 = 526-6/19 / __कला का अर्थ है अंश-भाग, एक योजन की 19 कला होती है। एक योजन की 19 कला या भाग करके उसमें से 6 भाग लेना। यह अर्थ 6 कला का समझना। अथवा योजन की कला बनाकर भी यह भागाकार कर सकते है। 526 योजन X 19 = 9994 + 6 = 10,000 कला. 1,00,000 योजन X 19 = 19,00,000 + 10,000 = 190 | लघु संग्रहणी सार्थ (130) खंड का प्रमाण
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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