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________________ विशेषार्थ १६वां उपपात द्वार में गर्भज तिर्यंच का एक दंडक, विकलेन्द्रिय के 3 दंडक, सात नरक का एक दंडक और देवों के (2)13 दंडक, सब मिलकर 18 दंडक के जीव एक समय में एक साथ 1-2-3 इत्यादि संख्या से संख्यात या असंख्यात भी उत्पन्न होते हैं क्योंकि इन हरेक दंडक के जीव उत्कृष्ट से असंख्य असंख्य है इसलिए एक समय में उत्कृष्ट से असंख्य भी उत्पन्न होते हैं। गर्भज मनुष्य एक समय में निश्चय से 1-2-3 इत्यादि संख्या से अवश्य संख्यात ही उत्पन्न होते है। लेकिन असंख्य या अनंत उत्पन्न नहीं होते हैं। क्योंकि गर्भज मनुष्यों की इस जगत में सब मिलाकर (3)29 अंक जितनी ही संख्या है। स्थावर के पांच दंडक में 1 वनस्पतिकाय का जीव एक समय में अनंत उत्पन्न होते है क्योंकि सूक्ष्म निगोद और बादर निगोद रूप वनस्पति के जीव इस जगत में जघन्य से भी अनंत है किन्तु असंख्यात या संख्यात नहीं। यहां यह विशेषता है कि प्रत्येक वनस्पति के जीव अनंत नहीं लेकिन असंख्य ही है इसलिए प्रत्येक वनस्पति के जीव एक समय में असंख्य ही उत्पन्न होते है शेष चार स्थावर के सूक्ष्म या बादर जीव भी जगत में असंख्य-असंख्यात ही है, अनंत या संख्यात नहीं है। इसलिए इन चार दंडक के जीव एक समय में एक साथ असंख्यात ही उत्पन्न होते है। 1-2-3 इत्यादि संख्यात नहीं होते है परन्तु असंख्यात उत्पन्न होते है। फूटनोट : .(२)देवों के वैमानिक दंडक में यह विशेषता कि 9 वें देवलोक से अनुत्तर देवलोक तक के वैमानिक देवों में उत्पत्ति और च्यवन एक समय में संख्यात जीवों का ही होता है क्योंकि इन देवों की गति आगति सिर्फ गर्भज मनुष्यों में ही होती है। (३)गर्भज मनुष्यों 79228162, 5142643, 3759354, 3950336 इतनी संख्या ही है। इनसे ज्यादा कभी भी नहीं होते है। दंडक प्रकरण सार्थ उपपात द्वार
SR No.004273
Book TitleDandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Original Sutra AuthorGajsarmuni, Haribhadrasuri
AuthorAmityashsuri, Surendra C Shah
PublisherAdinath Jain Shwetambar Sangh
Publication Year2006
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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