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________________ गुरु की प्रभाविकता को अत्यधिक आगे बढ़ाया / इन्होंने वर्षों से प्रतिबन्धित मारवाड़े, सौरठ आदि की तरफ का विहार क्षेत्र खुल्ला कराया / साधुसाध्वीजी के विचरण के अभाव से जैसलमेर तरफ से लगभग 64 जितने जिन मन्दिर कण्टकाकीर्ण बन चुके थे जहाँ पर जाना भी दुर्गम था / आचार्य आनन्दविमलजी ने शिष्य परिवार सहित वहाँ पर जाकर लोगों को मूर्ति पूजा की महिमा को, परमात्म भक्ति को समझाया / जिससे वर्षों से बन्द पड़े मन्दिरों में पुनः पूजा सेवा, भक्ति, आराधना चालू हो गई / सौराष्ट्र में गुरुओं का विचरण प्रारम्भ होने से लुंपकमत का प्रचार घटने लगा इतना ही नहीं लुंपकमत के 78 जितने साधुओं ने कुमत का त्याग करके तपागच्छीय दीक्षा को इनके वरदहस्त से स्वीकार किया / जिससे मूर्ति पूजा की महिमा सर्वत्र व्याप्त हो गई। मन्त्री कर्माशा द्वारा शत्रुञ्जय तीर्थ का 16वाँ उद्धार भी आचार्य आनन्दविमलसूरिजी के सदुपदेश से ही हुआ | 1587 वैशाख वदि छठ रविवार को शत्रुञ्जय का आज तक का उद्धार इतिहास में अंकित है / - श्री आनन्दविमलसूरिजी महाराज का तपोमय जीवन आश्चर्य युक्त है / 14-14 वर्ष तक छोटे-बड़े अनेकों तप किए / तत्पश्चात् छठ के पारणे आयम्बिल से छठ का भीष्म अभिग्रह धारण किया / अन्त में मर्यादित अनशन स्वीकार करके अन्तिम आराधना करते हुए अहमदाबाद निजामपुरा में वि. सं. 1596 चैत्र सुदी सप्तमी की प्रभात में देह त्याग किया / उस दिन उनका नवमा उपवास था / इनकी पाट पर अनुक्रम से श्री दानसूरिजी महाराज, श्री हीरविजयसूरिजी महाराज, श्री विजयसेनसूरिजी महाराज जैसे धुरन्धर आचार्य हुए / __ आचार्य हेमविमलसूरिजी तथा आचार्य आनन्दविमलसूरिजी इन दोनों ने शासन की रक्षा और प्रभावना के लिए अनेकों कार्य किए। इनकी सम्पूर्ण आराधना और प्रभावना के मूल में दो महत्वपूर्ण कारण थे / एक तो यक्षराज मणिभद्र की शासन रक्षक देव तरीके प्रतिष्ठा तथा दूसरी उत्कृष्ट संयम पालन के साथ किया हुआ क्रियोद्धार / इन्हीं के प्रभाव के कारण तपागच्छ परम्परा की 43
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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