________________ वस्तुतः आज मैं अपने आपको भाग्यशाली मानता हूँ, आज मैं धन्य धन्य हो गया हूँ ऐसा संघ का सुरक्षा कार्य भाग्यशाली के ही हाथ में आता है / इसी क्षण में आपश्रीजी के समक्ष प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं तपागच्छ के रक्षा सुरक्षा का कार्य अपना कर्तव्य समझकर सदैव करता रहूँगा, परन्तु मेरी भी आपश्रीजी से एक नम्र विनती है कि आपश्रीजी जानते ही हैं कि देवगति तो मौज मजा मनाने वाली गति है / इस मौज मजा में मस्त होकर कहीं मैं कर्त्तव्य भ्रष्ट न हो जाऊँ इसलिए तपागच्छ की पौषधशाला में मेरी स्थापना कराना जिससे भक्तों की प्रार्थना के प्रभाव से मैं सदा सजग सावधान रहूँगा / इसके साथ ही तपागच्छ में जब कोई भी आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हो तो कम से कम एक बार मुझे जरूर धर्मलाभ तथा दर्शन देने के लिए मगरवाड़ा पधारे | धर्मलाभ के आशीर्वाद को पाकर मेरा जीवन कृतार्थ बन जाएगा / मेरा सम्यक् दर्शन निर्मल बनेगा और जिनशासन की रक्षा और प्रभावना में मैं सहायक बनूँगा / आचार्यश्री हेमविमलसूरिजी महाराज ने मणिभद्र यक्ष की दोनों बातों को स्वीकार किया / जिससे मणिभद्र यक्ष प्रसन्न हो गए | गुरु चरणों की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ / इससे स्वयं को धन्य मानते हुए यक्षराज अदृश्य हो गए / महासुदी पंचमी के शुभ मुहूर्त में आचार्य श्रीजी ने मगरवाड़ा गाँव के बाहर योग्य स्थान पर मणिभद्रजी के पाँव की पिण्डी की स्थापना कराई और मन्त्रोच्चारण करके प्रतिष्ठा विधि कराई / आज भी मगरवाड़ा भूमि का यह स्थान प्रभावशाली है और मगरवाड़ा वीर के नाम से मणिभद्रजी की महिमा सुप्रसिद्ध है। आचार्य भगवन ने प्रतिष्ठा प्रसंग पूर्ण होने के बाद जिनशासन के अधिष्ठायक मणिभद्रवीरजी को तपागच्छ रक्षक की पदवी अर्पित की, जिससे मणिभद्रजी परम प्रसन्नता को प्राप्त हुए / श्री मणिभद्रजी की कथानुसार इनके तीन स्थान हैं / 41