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________________ परिवार के दस-दस साधुओं का निर्दयी रीति से घात होने के कारण अब उनका मन आगरा शहर में उदासीन रहने लगा | सूरिजी ने एक शुभ दिन अपने साधु परिवार के साथ आगरा से गुजरात : की तरफ विहार कर दिया / अनेकों गाँव, नगर, शहरों में होते हुए एक शुभ दिन गुजरात की धरती पर पहुँच गए / पालनपुर से विहार करके जैसे ही मगरवाड़ा की धरती पर चरण रखते ही उनको सेठ माणेक शा की स्मृति आ गई / सेठ की स्मृतियों के साथ ही गुरुदेव ने मगरवाड़ा में प्रवेश किया / सूरिजी ने अट्ठम तप की आराधना की / नित्यक्रम अनुसार ध्यानावस्था में मग्न हो गए / दिनभर माणेकचन्द सेठ का हो रहा आभास रात्रि के समय एकदम स्पष्ट हो गया / एक अद्भुत देहाकान्ति से देदीप्यमान एक देव आकृति गुरुदेव के समक्ष प्रगट हुई। उसकी देह श्यामल वर्ण से युक्त थी, दर्शन मन को आनन्द देने वाला था, सूर्य जैसा तेजस्वी उसका मुख था, मस्तक पर सुनहरी बाल थे, कमल की पाँखड़ी जैसी उसकी आँखें थीं, पूर्णिमा के चाँद जैसा मुस्कुराता चेहरा था, मस्तक पर तेजस्वी लालवर्ण का मुकुट प्रकाश फैला रहा था, विविध अलंकारे से उसकी देह शोभायमान हो रही थी, उसके हाथ, पैर, नाक, नख, जीभ, होंठ लालवर्ण युक्त थे / श्वेत वर्ण के ऐरावत हाथी पर विराजमान थे। ऐसी सुन्दर देव आकृति ने भक्ति भाव भरी वाणी से कहा- गुरुदेव ! क्या आपने मुझे पहचाना ? गुरुदेव टकटकी लगाकर देखने लगें / देव बोलागुरुदेव ! मैं आपका भक्त माणेक / इसी भूमि पर मृत्यु प्राप्त करके मैं मणिभद्र नाम का यक्ष बना हूँ | मैं व्यन्तर निकाय का छठा इन्द्र हूँ | मेरी सेवा में चार हजार सामानिक देवता, सौलह हजार आत्मरक्षक देवता, तीस हजार तीन पर्षदा के देव हैं / इसके अतिरिक्त असंख्य अभियोगिक देवता हैं | 52 वीर और 64 योगिनियाँ मेरी आज्ञा के अधीन हैं / माणेकचन्द से मुझे मणिभद्र यक्ष , बनाने वाली आपकी कृपा ही है | यक्षेन्द्र रूप में अवतार मिलने पर भी मैं तो आपकी चरण-रज बनने में ही धन्यता का अनुभव करूँगा / आपश्रीजी 38
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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