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________________ अभिग्रह धारण कर लिया कि जब तक मेरा पुत्र जिन पूजा चालू नहीं करेगा तब तक मेरा छः विगई का त्याग | आज कल के युग में जिनप्रिया जैसी कितनी माता मिलेंगी ? तू होमवर्क नहीं करेगा तब तक बाहर जाने नहीं दूंगी, तब तक टी.वी. देखने नहीं दूंगी, ऐसा कहने वाली बहुत माताएँ होंगी, परन्तु तू मन्दिर नहीं जाएगा तो नाश्ता नहीं मिलेगा, पूजा नहीं करेगा तो भोजन नहीं मिलेगा, तू पाठशाला धर्माक्षर सीखने नहीं जाएगा तो टी.वी. नहीं देखने दूंगी ऐसी माताएँ आजकल बहुत विरली होंगी / संसार में ऐसी विरली श्राविकाएँ होती हैं जो अपने पुत्र की मात्र देह की नहीं आत्मा की चिंता करती हैं उसके एक भव का नहीं भवोभव का चिंतन करती हैं / जिनप्रिया का नम्बर ऐसी माता में था माणेक शा के इस लोक की नहीं अपितु परलोक की भी चिंता करती थी / दोपहर का समय हो गया, माता जिनप्रिया खाना खाने के लिए बैठी, पुत्रवधू आनन्दरति ने गर्म-गर्म भोजन परोसा, जैसे ही थाली में देसी घी से चुपड़ी रोटी रखी तो माँ ने कहा कि बेटा ! मेरे लिए बिना घी की रूखी रोटी लेकर आओ | बहू बोली- माँ ! आज कोई विशिष्ट तिथि नहीं है तो घी का त्याग क्यों किया ? माँ ने कहा- बेटा ! आज से मेरा मात्र घी का ही नहीं छः ही विगई का त्याग है / सुनकर आनन्द को धक्का लगा, बोली माँ ! त्याग का कारण क्या है ? जैसे ही माँ ने अपने हृदय गत अभिग्रह की बात की तो बहू की आखों से अविरल अश्रुधारा छूट गई और बोली- माँ ! यह कैसा न्याय ? भूल कोई करे और सजा कोई भरे / जिनप्रिया ने बहू के सिर पर प्यार से हाथ रखकर कहा- बेटा रति ! प्रभु की कृपा से सब ठीक हो जाएगा, तू मेरी चिंता मत कर / माँ ने आनन्दरति को शान्त करने के बहुत प्रयत्न किए परन्तु वह नहीं मानी और माँ के सामने खड़ी होकर हाथ जोड़कर प्रतिज्ञा कर ली कि जब तक आपका छः विगई का त्याग, तब तक मेरा भी छ: विगई का त्याग / 25
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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