________________ 3. काम, क्रोध, निन्दा, ईर्ष्या, लालसा आदि दोषों का नाश होता प्रश्न- 207. चौथे-पाँचवें करण की व्याख्या समझाएँ ? उत्तर चौथे करण का नाम उद्वर्तना है / उद्वर्तना का अर्थ है बढ़ना / जब आत्मा में कर्म बन्ध जाते हैं तो कर्मों के स्वभाव में फेरफार संक्रमण करण से हुआ तथा कर्मों के समय में वृद्धि होना / समय की मात्रा बढ़ जाना उद्वर्तना कहलाता है / समय की मात्रा घट जाना पाँचवाँ अपवर्तना करण है / जो कर्म 10 वर्ष तक दुःख देने वाले थे / शान्तिकाल में हिंसादि के कार्यों में तत्पर रहने से वह कर्म 10 वर्ष के बदले 20 वर्ष तक भी दुःख दे सकता है कर्मों की तीव्रता में भी वृद्धि होती है / कोई बुखार 100 डीग्री तक रहने वाला हो तो उद्वर्तना करण से वह बुखार 5 डीग्री तक भी आ सकता है / सदैव मन में शुभ अध्यवसायों की वृद्धि होनी चाहिये न कि घटौती / प्रश्न- 208. उद्वर्तना करण को दृष्टान्त से समझाएँ ? / मान लीजिये आप परमात्मा की पूजा खूब भावों से दो घण्टे लगा कर, करके आये / खूब आनन्द आया / जब घर पर वापिस आये तो पता चला कि ग्राहक आया था, वह राह देख-देख कर चला गया | सौदा जो हो रहा था, वह रह गया तब मन में विचार आ जाए कि मैं जल्दी आ गया होता तो कितना अच्छा होता ! आज क्यों पूजा-भक्ति में इतना समय मैंने लगा दिया ? खूब अफसोस हुआ | तो आप ही कहें कि बान्धे कर्मों में पुण्य बढ़ेगा या पाप / ज्ञानी भगवन्त कहते हैं- अब पुण्य कर्म की तीव्रता में कमी आ जाएगी / पाप वृद्धि होगी / उत्तर आपने तप किया और विशिष्ट प्रभावना न मिले तो तप का पश्चात्ताप 238