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________________ . आता / अगर निःस्वार्थ भाव से संघ-समाज के कार्य करने पर भी यश के बदले अपयश मिलता है तो किसी को भी दोषी ठहराए बिना अपने अपयश नाम कर्म को दूर करने का प्रयत्न करना आवश्यक है। 7. कई बार काम कोई करता है यश स्वयं को मिलता है उसके पीछे उस व्यक्ति का यश नाम कर्म कारण है। 8. पाँच प्रकार की जाति अर्थात एकेन्द्रिय-दोइन्द्रिय-तेइन्द्रियचउरिन्द्रिय-पचेन्द्रिय ये पाँच जाति नाम कर्म / 9. किसी को हंस जैसी गति तो, किसी की कौए जैसी यह भी शुभ विहायोगति-अशुभ विहायोगति नाम कर्म कारण है / प्रश्न- 142. नाम, कर्म का अधिक प्रभाव किस के ऊपर पड़ता है ? उत्तर- . नाम कर्म का मुख्यतः शरीर उपर प्रभाव पड़ता है / जैसे किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व ही ऐसा होता है कि सामने वाला देखते ही प्रभावित हो जाता है / यह पराघात नाम कर्म है। अपने शरीर के सभी अवयव यथास्थान पर व्यवस्थित जैसे मुख में ही दाँत है- हाथ-पाँव स्वस्व स्थान पर है यह सब निर्माण नाम कर्म का ही उपकार है। रावण अष्टापद तीर्थ पर भक्ति करते हुए, मंदोदरी नृत्य कर रही है रावण वीणा बजा रहे हैं वीणा का तार टूटते ही भक्ति में विघ्न न आए रावण ने अपनी जंघा से नस निकाल तार रूप में उपभोग कर संगीत चालू रखा, हृदय में रहे भावोल्लास से तीर्थंकर नाम कर्म बान्धा / इस प्रकार मुख्य-मुख्य भेदों का वर्णन किया है / प्रश्न- 143. नामकर्म का बन्ध कैसे होता है ? 206
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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