________________ 2. चारित्र मोहनीय- परमात्मा की वाणी के प्रति श्रद्धा हो जाने पर भी उसके अनुसार आचरण न करने दे उसे चारित्र मोहनीय कर्म कहते हैं / इसके 25 भेद हैं / इस प्रकार मोहनीय कर्म के कुल 3 + 25 = 28 भेद हैं। उत्तर प्रश्न- 102. दर्शन मोहनीय के तीन भेदों की व्याख्या समझाएँ ? 1. मिथ्यात्वमोहनीय कर्म- सत्य में असत्य की तथा असत्य में सत्य की बुद्धि कराने वाला कर्म मिथ्थात्वमोहनीय है / 2. मिश्रमोहनीय कर्म- जिनवचन में रुचि भी नहीं और अरुचि भी न होने दे वह मिश्रमोहनीय कर्म है / 3. सम्यक्त्वमोहनीय कर्म- प्राप्त समकित में बारम्बार शंका पैदा कर दूषित करने वाला कर्म सम्यक्त्व मोहनीय कहलाता है / ये तीनों दर्शन मोहनीय कर्म कहलाते हैं / यह सम्यग्दर्शन रूपी आत्मा के गुण पर आक्रमण करते हैं / प्रश्न- 103. चारित्र मोहनीय कर्म के कितने भेद हैं ? वर्णन करें / चारित्र मोहनीय कर्म के 25 भेद हैं / 16 कषाय मोहनीय कर्म + 9 नौ कषाय मोहनीय कर्म / 16 कषाय मोहनीय- 1. क्रोध-मान-माया-लोभ ये चार कषाय जिन्दगी तक रहे तो अनन्तानुबन्धी कषाय कहे जाते हैं / 2. अप्रत्याख्यानीय कषाय- ये चारों कषाय 1 वर्ष तक रहे तो अप्रत्याख्यानीय कषाय कहे जाते हैं | 3. प्रत्याख्यानीय कषाय- ये चारों क्रोध-मान-माया-लोभ 4 मास तक रहे तो प्रत्याख्यानीय कषाय कहे जाते हैं | उत्तर 185