________________ 2. परोक्ष ज्ञान- जिस प्रकार लंगड़े व्यक्ति के पास चलने की सहज 'शक्ति क्षीण होने से लकड़ी की सहायता लेनी पड़ती है उसी प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म के कारण जानने की सहज आत्मिक शक्ति ढक जाने से साक्षात् आत्मा द्वारा वस्तु का बोध नहीं होता तब जीव को इन्द्रिय और मन की सहायता लेनी पड़ती है / इन्द्रियाँ पदार्थ का ज्ञान होते ही तुरन्त मन को सूचना देती हैं तथा मन तुरन्त आत्मा को सूचना देता है तब आत्मा को पदार्थ का ज्ञान होता है / इन्द्रिय और मन की सहायता से जो बोध होता है उसे परोक्ष ज्ञान कहते हैं जैसे मतिज्ञान और श्रुत ज्ञान परोक्ष है / दूसरा कर्म - दर्शनावरणीय कर्म प्रश्न- 86. दर्शनावरणीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर- दर्शन अर्थात् देखना / आत्मा में रही देखने की शक्ति को रोकने वाला कर्म दर्शनावरणीय कर्म कहलाता है / आत्मा में अनन्त दर्शन गुण है / आत्मा द्वारा कोई भी वस्तु देखे बिना नहीं रह सकती परन्तु जब दर्शनावरणीय कर्म रूपी बादल आत्मा रूपी सूर्य के आगे आ जाते हैं तब आत्मा अन्धा-बहरा बन जाता है / सूंघने की शक्ति मन्द हो जाती है / जीभ भोजन के स्वाद के लिए, चमड़ी स्पर्श का अनुभव करने के लिए व्यर्थ जैसी हो जाती है / सदा जागृत रहने ‘वाली आत्मा निद्रा लेने का कार्य करती है / यह सब दर्शनावरणीय कर्म का प्रभाव है। प्रश्न- 87. दर्शनावरणीय कर्म किसके समान है ? दर्शनावरणीय कर्म द्वारपाल के समान है / जैसे किसी व्यक्ति को राजा से मिलने की इच्छा हो परन्तु द्वारपाल नाराज हो तो वह राजा के पास नहीं लेकर जाएगा / जिस कारण व्यक्ति राजा से मिल नहीं सकता / ठीक इसी प्रकार जीव रूपी राजा की इच्छा उत्तर 176