________________ उत्तर प्रश्न- 77. सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि के अवधि ज्ञान में कोई अन्तर है ? देवलोक में दोनों प्रकार के देवता होते हैं / सम्यग्दष्टि भी और मिथ्यादृष्टि भी / सम्यग्दृष्टि जीव को मति-श्रुत-अवधि तीनों ज्ञान रूप में होते हैं जबकि मिथ्यादृष्टि को मति अज्ञान-श्रुत अज्ञान और अवधि अज्ञान-विभंग ज्ञान होता है / प्रश्न- 78. मनःपर्यव ज्ञानावरणीय किसे कहते हैं ? उत्तर मनःपर्यव ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से दूसरे व्यक्ति के मन के भावों को नहीं जान सकता क्योंकि मनःपर्यव ज्ञानावरणीय कर्म के ही कारण है। प्रश्न- 79. मनःपर्यवज्ञान के कितने भेद हैं ? वर्णन करें / उत्तर- मन:पर्यवज्ञान के दो भेद हैं / 1. ऋजुमति मनःपर्यवज्ञान- ढाई द्वीप और दो समुद्र में रहे हुए संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मन के भावों को सामान्य रूप से जानने की आत्म शक्ति को ऋजुमति मनःपर्यव ज्ञान कहते हैं / 2. विपुलमति मनःपर्यवज्ञान- ढाई द्वीप और दो समुद्र में रहे हुए संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मन के विचारों को विशेष रूप से बताने वाली आत्मशक्ति को विपुलमति मनः पर्यव ज्ञान कहते हैं / प्रश्न- 80. मनःपर्यव ज्ञान किसे होता है ? उत्तर- मन:पर्यव ज्ञान साधु वेश धारण किए बिना प्राप्त नहीं होता / तीर्थंकर भगवन्त भी जब दीक्षा ग्रहण करते हैं तब उनके कन्धे पर देवता देवदूष्य वस्त्र डालते हैं करेमि भंते का पाठ लेते हैं, उसी समय तीर्थंकर परमात्मा को मनःपर्यव ज्ञान उत्पन्न होता है / गृहस्थ जीवन में इस ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती / 174