________________ उत्तर- प्रतिमास के लिए शक्ति हो तो 51-51 लोगस्स एवं खमासमणे-साथिये करने चाहिए, माला तो सदैव बीस ही होती है / गुरु का योग हो तो व्याख्यान अवश्य सुनें / परमात्म-पूजा, गुरुवन्दन-सामायिक आदि करने ही होते हैं / देववन्दन तीन बार, दो समय प्रतिक्रमण भी आवश्यक है / शक्ति हो तो उपवास, नहीं तो आयम्बिल, बिल्कुल भी शक्ति न हो तो एकासना करें / उत्कृष्ट रूप से तो उपवास ही करना चाहिए / 51-51 करने की प्रतिमास अनुकूलता-शक्ति न हो. तो पाँच-पाँच करके भी पंचमी की आराधना करनी चाहिए / प्रतिवर्ष तो उत्कृष्ट रूप से करनी ही होती है चाहे पाँच वर्ष 5 मास क्यों न पूर्ण हो गए हों / प्रश्न-41. ज्ञान पंचमी की आराधना कर किसने ज्ञानावरणीय कर्म का नाश किया ? ज्ञान पंचमी की भावपूर्पक एवं उल्लास सहित आराधना कर वरदत्त तथा गुणमंजरी ने उसी भव में ज्ञानावरणीय का क्षयोपशम कर कोढ़ रोग से भी मुक्त हुए तथा गूंगापन-बहरापन तथा मूढ़ता को दूर कर सम्यग्ज्ञान को पाया था / अतः जैन कुल में पैदा होने वाले प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह बालक हो, युवा-प्रौढ़ हो या वृद्ध सभी को ज्ञान पंचमी की आराधना कर मानव जीवन को सफल करना चाहिए / उत्तर प्रश्न- 42. ज्ञानवरणीय कर्म किसके समान है ? उत्तर ज्ञानावरणीय कर्म आँखों पर बन्धी हई पट्टी समान है / जैसे किसी मानव के पास आँखें हो अगर उसकी आँखों पर पट्टी बान्ध दी जाए तो क्या वह देख सकता है ? नहीं ना ! ठीक इसी प्रकार आत्मा के अन्दर अनन्त ज्ञान होने पर भी वह ज्ञानावरणीय रूपी पट्टी आ जाने से अपनी आत्मा दिवार के 161