________________ प्रश्न- 36. आत्मा अनन्त गुणवान-ज्ञानवान होते हुए भी ज्ञान प्रकट क्यों नहीं होता ? उत्तर आत्मा सूर्य समान है। जैसे सूर्य अपनी किरणों के द्वारा जगत को प्रकाशित करता है वैसे ही आत्मा भी अपने गुणों द्वारा अपने जीवन को प्रकाशित बनाती है। जैसे सूर्य के आसपास चारों ओर बादलों का आवरण आ जाए, सूर्य बादलों से ढक जाए तो सूर्य का प्रकाश होते हुए भी वह प्रकाशमान नहीं बन पाता / ठीक इसी प्रकार सूर्य समान आत्मा के चारों ओर कर्म रूपी बादल छा जाने से आत्मा के गुण ढक जाने पर आत्मा का प्रकाश कम हो गया / गुणों से विपरीत दोषों से जीवन में अन्धकार व्याप्त हो गया / अतः आवश्यकता है कर्मों को हटाकर आत्मा में रहे ज्ञान गुण प्रगट करने की / प्रश्न- 37. ज्ञानावरणीय कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर ज्ञान= समझ-जानकारी, जिस के बल से दुनिया की कोई भी वस्तु अज्ञात नहीं हो सकती, आत्मा में अनन्त ज्ञान है / उसको आवरण यानि ढकने वाला कर्म ज्ञानावरणीय कर्म कहा जाता है / ज्ञानावरणीय कर्म रूपी बादल आत्मा रूपी सूर्य के ऊपर छा जाने से आत्मा अज्ञानी-जड़-मूर्ख बना है वह ज्ञानावरणीय कर्म के कारण ही / चाहे कितनी भी मेहनत क्यों न करें फिर भी याद नहीं रहता कई बार याद की हुई गाथाएँ भी इस कर्म के प्रभाव से भूल जाती हैं | ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से समझन शक्ति नहीं खिलती है। प्रश्न- 38. ज्ञानावरणीय कर्म के बन्ध से बचने के उपाय बताओ ? उत्तर- निम्नलिखित बातों में अगर सावधानी रखेंगे तो अवश्य ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध नहीं होगा / 158