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________________ इक्कीस (21) संघों में इक्कीस (21) ही धुरन्धर आचार्य थे / प्रत्येक संघ के संघपति श्रावक अरबोपति थे / संघ माल पहनने की बोली भी जरूरी थी / यह बोली कैसे बोली जाए इसका निर्णय करने के लिए सभी संघों के आचार्य एकत्रित हुए / सभी के सामने यह समस्या थी कि यदि धन के माध्यम से बोली होगी तो संध्या तक भी इसका अन्त नहीं आएगा / क्योंकि सभी संघपति पुण्यात्माएँ अरबोपति हैं, कोई भी इस सुन्दर स्वर्णिम अवसर को छोड़ना नहीं चाहता / अब क्या करना चाहिए / अन्त में सभी ने सर्वानुमति से निर्णय किया कि प्रत्येक संघपति अपना भावी सुकृत प्रकट करें / उस सुकृत की श्रेष्ठता के क्रम से संघमाल का कार्यक्रम आयोजित होगा / आचार्य भगवन्तों की निश्रा में सभी संघपति एकत्रित हुए / सभी ने इस निर्णय को स्वीकार किया / माल के शुभ दिन चतुर्विध संघ की उपस्थिति में सभी संघपतियों ने अपना-अपना सुकृत निवेदित करना प्रारम्भ किया / किसी ने पाँच करोड़ रुपये के दान करने का, किसी ने दूसरा छःरी पालित महासंघ निकालने का, किसी ने शिखरबन्दी दस जिनालयों का निर्माण कराने का उद्घोष किया / जब एक संघपति ने अपने बेटे को दीक्षा दिलाने की घोषणा की तो सभी में सन्नाटा छा गया / उसी समय राणकपुर तीर्थ के निर्माता धरणा शा ने अपनी पत्नी सहित खड़े होकर कहा- गुरुदेव ! आज से लेकर जीवन पर्यन्त में सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करूँगा मैं इस सुकृत की घोषणा करता हूँ। उसकी इस प्रतिज्ञा को सुनकर सभी दाँतों तले ऊँगली दबाने लगे / सभी संघ में एक ही आवाज सुनाई देने लगी कि धन्य इस सजोड़े को, बत्तीस वर्ष की युवावस्था और ब्रह्मचर्य का पालन / __ सभी आचार्यों के अग्रगण्य आचार्य भगवन्त ने कहा कि संसार में रहकर बत्तीस (32) वर्ष की युवावस्था में तथा सम्पूर्ण भोग सम्पत्ति होने पर भी ब्रह्मचर्य का पालन करना अति कठिन कार्य है इसलिए मैं इस दम्पत्ति को प्रथम संघमाल पहनने की घोषणा करता हूँ | गुरु आज्ञा को तहत्ति कहं कर सभी ने मान्य किया / सर्वत्र आनन्द की लहर फैल गई / 131
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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