________________ करके शुभ दिन प्रतिष्ठा का निश्चित किया / वि. सं. 1587 वैशाख वदि छठ, रविवार, श्रवण नक्षत्र को प्रतिष्ठा दिन की घोषणा की / सभी सुनकर अति प्रसन्न हुए / मुहूर्त का शुभ दिन निश्चित हो जाने के पश्चात् चारों तरफ कुम्कुम् पत्रिकाएँ भेजी गईं / 100 (सौ) वर्षों के पश्चात् प्रतिष्ठा का पुनः अवसर आया / किसको आनन्द नहीं होगा / सूचना मिलते ही लाखों की संख्या में लोग एकत्रित हो गए / करमा शा की भावभरी विनती को स्वीकार करके आचार्य भगवन श्रीमद्विजय विद्यामण्डनसूरीश्वरजी म. भी एक हजार पदस्थ, अपदस्थ साधु-साध्वीजी के परिवार सहित पधार गए | चारों तरफ विशाल जन समूह दिखाई दे रहा था / करमा शा एवं उसके परिवार ने सभी के भोजन की, ठहरने की समुचित व्यवस्था की / जो भी कुछ माँगता तो उसे खुले हाथों दिया जाता था / प्रतिष्ठा महोत्सव निमित्त स्थान-स्थान पर सुन्दर पट मण्डप बान्धे गए / मोती, माणिक के झूमर लटकाए गए / ऊँची-ऊँची ध्वजाएँ पंक्तिबद्ध लटकाई गई / सकल श्रीसंघों ने मिलकर प्रतिष्ठा महोत्सव की कार्यवाही उपाध्याय विनयमण्डनजी को सौंप दी / विविध गच्छों के आचार्यों ने मिलकर प्रतिष्ठाचार्य के रूप में आचार्य भगवन्त श्री विद्यामण्डनसूरिजी को नियुक्त किया / ___वैशाख वदि छठ का शुभ दिन आ गया / वाजिंत्रों से आकाश गुंजायमान होने लगा | स्त्रियाँ मंगलगीत गाने लगी / भव्य प्राणी दादा के दरबार में मधुर स्वरों से गीत गाकर नृत्य करने लगे | कुंकुं-कर्पूर की वृष्टि होने लगी / ॐ पुण्याऽहं पुण्याऽहं की मंगल ध्वनि चालू हो गई / चारों तरफ दिव्य ध्वनि से वातावरण प्रसारित हो गया / शंखनाद गूंजने लगा / ऐसे शुभ वातावरण में शुभ मुहूर्त में शुभ लग्न में जब करमा शा दादा की प्रतिष्ठा कराने लगा और आचार्य भगवन मन्त्रोच्चार बोल रहे थे उस समय दादा की प्रतिमा से दिव्य तेज प्रगट हुआ और दादा की मूर्ति ने सात बार श्वासोश्वास लिया / देवता देवाधिदेव के प्रति पूज्य भाव से बिम्ब में संक्रान्त हो गए / लोगों ने हर्षोल्लास से स्वर्ण वृष्टि 119