________________ भावना पूरी होगी या नहीं ? आचार्य भगवन ज्ञानी थे / उन्होंने कुछ क्षण विचार करके उत्तर दिया- तोला शा ! पूरी तो अवश्य होगी, परन्तु तुम्हारे हाथ से नहीं, तुम्हारे इस छोटे पुत्र करमा शा के हाथों अवश्य पूर्ण होगी / ('बाल करमा शा ने गुरु के मुख से जैसे ही शब्द सुने तो उसने शकुन मानकर अपने वस्त्र के किनारे पर गाँठ बान्ध दी कि कोई अज्ञात शुभ कार्य मेरे हाथों से पूर्ण होने वाला है, ऐसी भविष्यवाणी के श्रवण से उसका अन्तर्मन नाचने लगा / ') ___ गुरुदेव ने कहा- तोला शा ! तुम चिन्ता मत करो, शत्रुञ्जय तीर्थोद्धार का कार्य शीघ्र ही तुम्हारे पुत्र के हाथ से धूमधाम से महामहोत्सव पूर्वक होगा / पहले भी जब समरा शा ने उद्धार कराया था / तब भी हमारे पूर्व पूर्वज गुरु भगवन्तों के वरद हस्त-कमलों से प्रतिष्ठा हुई थी और अब भी जब जीर्णोद्धार होगा तब तेरे पुत्र और मेरे शिष्य उस प्रतिष्ठा महोत्सव में उपस्थित होंगे। आचार्य गुरुदेव विजय श्री धर्मरत्नसरिजी मुख से इस प्रकार की भविष्यवाणी को सुनकर तोला शा के हृदय की व्यथा और वेदना कुछ कम हो गई / परन्तु तीर्थ के जीर्णोद्धार का शुभ कार्य अपने हाथ से नहीं होगा इसका झटका अन्तरात्मा में लगा / आचार्य भगवन ने चित्तौड़गढ़ में आए हुए चित्रकूट पर्वत पर अनेकों जिन मन्दिरों का दर्शन आदि करके जब संघ सहित विहार करने लगे तब तोला शा ने कुछ दिन अधिक स्थिरता के लिए विनती की, परन्तु गुरुदेव की संघ के साथ अन्य तीर्थों की यात्रा करने की भावना थी अतः गुरुदेव ने मना कर दिया / जिससे तोला शा का मन व्याकुल हो गया, मुख चिन्ताओं के बादलों से घिर गया, बोला - गुरुदेव ! तीर्थोद्धार की वेदना से व्यथित इस श्रावक पर करुणा कीजिए / गुरुदेव ! गामोगाम के संघ दादा की पुनः प्रतिष्ठा के लिए चिन्तातुर हैं / मैं भी अब वयोवृद्ध हो गया हूँ | मेरी जीवन रूपी संध्या भी अब ढल रही है / आपश्री जी हमारे ऊपर कुछ कृपा दृष्टि की वृष्टि कीजिए / तब आचार्य भगवन ने अपने दो शिष्यों को उपाध्याय श्री विद्यामण्डनविजयजी महाराज तथा विनयमण्डनविजयजी महाराज को आज्ञा दी कि आप यहाँ चित्तौड़गढ़ में ही 110