________________ वस्तुपाल दादा की यात्रा करके वापिस अपने राज्य में आ गया परन्तु मन में दादा की प्रतिमा के लिए पत्थर कैसे प्राप्त करना इसका चिन्तन चलने लगा / उसी मध्य एक घटना बनी कि.......... दिल्ली के मोजुद्दीन बादशाह की माँ हज करने के लिए मक्का मदीना जा रही थी / उसके साथ पूरा रसाला था / जब वह दरिया के मार्ग से खम्भात की बन्दरगाह पर पहुँची तो वस्तुपाल ने अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से समय का लाभ उठाकर अपने व्यक्तियों को आदेश दिया कि जाओ बादशाह की माँ को लूट लो और सारा माल मेरे पास हाजिर करो | (बादशाह की माँ को लूटना अर्थात् अपनी जान को हथेली पर रखना बादशाह को पता लग जाए तो प्राण संकट में) परन्तु धर्म के लिए प्राणों की बाजी लगाने के लिए भी वस्तुपाल तैयार हो गया / - वस्तुपाल के आदेश का उसके व्यक्तियों ने पालन किया और बादशाह की माँ को लूट लिया / उसका सारा माल सामान कब्जे में कर लिया / बन्दरगाह पर चारों तरफ हा-हाकार मच गया / इतने में वस्तुपाल भी वहाँ पर पहुँच गया / माँ ने अपनी फरियाद वस्तुपाल के सामने रखी / उसने कहा-माताजी ! आप कोई चिन्ता मत कीजिए | लुटेरों को मैं अभी पकड़ कर आपका सारा सामान अभी ही आपके सामने हाजिर करता हूँ | आप अभी मेरे महल में पधारिए और विश्राम कीजिए | बादशाह की माँ वस्तुपाल के मधुर और विवेकपूर्ण शब्दों को सुनकर प्रसन्न हो गई / वस्तुपाल ने माँ को आराम करने के लिए सुन्दर व्यवस्था कर दी और अनेक नौकर-चाकर उसकी सेवा में उपस्थित कर दिए / वस्तुपाल ने अपने सैनिकों को कहा कि जितना भी सामान माताजी का लूटा है वह सभी तुरन्त यहाँ पर हाजिर किया जाए / सैनिक दौड़े-दौड़े गए और सारा सामान ले आए | वस्तुपाल ने सारा सामान माँ के सामने रख दिया सामान प्राप्त हो जाने पर माँ के हर्ष का पार न रहा / वस्तुपाल ने कहा- माताजी ! अब मैं आपको हज करने के लिए नहीं जाने 99