________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 415 बचना व उस ब्राह्मण का राज सभा में सन्मान द्वारा उस का दारिद्रय . चूरने के बाद इस सर्ग की समाप्ति होना तक आपने इस सर्ग को पढ़ा / अब आगे क्या होता है इस की दूसरे भागमें प्रतीक्षा करें। तपागच्छीय-नानाग्रन्थरचयिता-कृष्णसरस्वतीबिरुदधारक-परमपूज्य-आचार्यश्री-मुनिसुंदरसूरीश्वरशिष्य-गणिवर्य-श्रीशुभशीलगणि· विरचिते श्रीविक्रमचरिते.. " सप्तमः सर्गः समाप्तः .. ... नानातीर्थोद्धारक-आबालब्रह्मचारि-शासनसम्राट्श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरशिष्य-कविरत्न-शास्त्रविशारद-पीयूषपाणि-जैनाचार्य-श्रीमद्विजयामृतसू. रीश्वरस्य तृतीयशिष्यः वैयावच्चकरणदक्ष__. मुनिश्रीखान्तिविजयस्तस्य शिष्यमुनिनिरंजनविज येन कृतो विक्रमचरितस्य हीन्दोभाषायां भावानु- पादः, तस्य च सप्तमः सर्गः समाप्तः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org