________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 403 NNNN पुत्र हुआ / राजाने जन्मोत्सव करके उस का नाम 'वीरकुमार' रखा। श्रीमती का स्वर्गवास ___पांच दाइयोंने इस बालक को स्तन्यपान आदि द्वारा पालापोषा / यह सुन्दर बालक शुक्ल पक्ष के चन्द्र के समान प्रतिदिन बढने लगा। कुछ दिनके बाद धर्मध्यान में लीन निर्मल शीलवाली वह श्रीमती अकस्मात् मर करके स्वर्ग में अत्यन्त प्रकाशमान कान्तिवाली देवी हुई / अपने पूर्व जन्म का स्मरण करके वह देवी श्रीमती अपने स्वामी शिव को धर्म बोध देने के लिये मनुष्य लोक में आई। आकर देखा कि शिव राजा लोगों के साथ शिकार, परद्रोह, मद्यपान आदि -सात व्यसनों में लीन है। क्यों कि यदि राजा धर्म करता है तो प्रजा भी धर्म करती है। परन्तु राजा यदि पाप करे तो प्रजा भी पाप करने में नहीं हिचकिचाती अर्थात् यथा राजा यथा प्रजा। श्रीमती का मृत्युलोग में आना व पति को पाप से बचाना अपने पतिको दुराचरण में लीन देखकर वह देवी सोचने लगी कि 'शीघ्रतया मैं अपने पूर्व जन्म के पति को पाप से किस प्रकार बचाऊँ।' कहा भी है कि: "सामर्थ्य रहने पर भी यदि अपने मित्रको या संबन्धी को पापकर्म से नहीं रोकता है तो उस पापसे वह व्यक्ति भी वज्रलेपक्त् हो जाता है यानी वही पापी ही गिना जाता है।"* * सामर्थ्य सति यो मित्रं न निषेधति पापतः / तस्यात्मा तस्य पापेन लिप्यते वज्रलेपवत् // 240 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org