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________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 397 गुरुजीने कहा कि सिद्धान्त में अनेक प्रकार के तप कहे गये हैं। नवकारसी, पोरसी, एकासन, उपवास, छट्ट, पंचमी, एकादशी, वीशस्थानक, वर्धमान आदि तप करनेसे दुष्ट कर्म सहज में ही नष्ट हो जाता है। जो दुष्ट कर्म नरक में युगों तक कष्ट भोगने पर भी कदापि नष्ट नहीं हो सकता / जो निश्चयपूर्वक सावधान होकर मंठि सहित गंठि बन्धन करते हैं वे मानों अपनी गंठि स्वर्ग और मोक्षसे बांध लेते हैं। यानी उन्हें मोक्ष और स्वर्गका सुख अनायास ही प्राप्त हो जाता है। कहा भी है: "तप सकल लक्ष्मी का विना शृंखला का नियंत्रण है। पाप, . प्रेत और भूतोंकों हटाने में वह सदैव बिना अक्षरका मंत्र है।"+ यह सुन कर कमलने कहाकि 'मैं आजसे एकान्तर अवश्य उपवास करूंगा तथा शुद्ध भावसहित गंठि सहित पच्चक्खाण भी करूंगा।' इस प्रकार गुरु के आगे प्रतिज्ञा करने के बाद विधिपूर्वक जीवन पर्यंत तप किया। बाद में तपके प्रभावसे कमल वणिक शरीर का त्याग करके प्रथम स्वर्ग में अत्यन्त तेजस्वी देव हुआ। ___ इस के बाद देवलोकका आयुष्य पूर्ण होनेपर मनोहर स्वप्न सूचितकर चन्द्रपुर के स्वामी चन्द्रसेन के तुम पुत्र हुए हो। हमेशा सब मनोरथोंका देनेवाला पूर्व में लगाया गया तपरूपी कल्पवृक्ष इस जन्म में राज्य लक्ष्मी + तपः सकललक्ष्मीणां नियंत्रणमश्रृंखलम् / दूरितप्रेतभूतानां रक्षामंत्री निरक्षरः // 189 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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