________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 395 "कोटि जन्म में भी दुर्लभ मनुष्य जन्म आदि सब सामग्री को प्राप्त करके संसार रूपी समुद्र में नौका रूप धर्म के लिये सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिये / "x इस प्रकार गुरु महाराज ने धर्मोपदेश किया और संसार की: असारता समझाई। बाद में राजा तेजःपुंजने पूछा कि 'हे गुरुजी ! मैंने पूर्व जन्म में किस प्रकार का पुण्य किया था कि जिस से मुझ को इस जन्म में राज्य मिला / ' गुरुमहाराज से तेजःपुंजका पूर्वभव कथन गुरु महाराज ने कहा कि 'हे महाभाग ! तुमने जो पूर्व जन्म में पुण्य किया है उसे ध्यान लगाकर सुन लो।' 'श्रीपुर में कमल नामका एक अतीव दरिद्र वणिक हुआ। उस की कमला नामक स्त्री थी। उस वणिक को क्रमश: तीन पुत्रिया उत्पन्न हुई। धन के अभाव से कन्याओ का विवाह न होने के कारण दुःखी होकर वह दूसरे के घर में नौकरी करने लगा। क्यों कि लक्ष्मी के प्रभाव से चतुरता तथा युवावस्था के प्रभाव से विलास जिस प्रकार जीव सीखता है ठीक वैसे ही दरिद्रता से दासत्व भी सीखता है। कुत्सित गाव में वास, कुत्सित राजा की सेवा, निन्दित भोजन, निरंतर कुद्धमुखाकृति वाली 4 भवकोटिदुःप्राप्यमवाप्य नृभवादिसकलसामग्रीम् / भवजलधियानपात्रे धर्मे यत्नः सदा कार्यः // 174 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org