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________________ . 'विक्रम चरित्र शोलरक्षा के लिये हेमवतीने अपने गलेमें पाश लगाया . . . इस प्रकार विद्याधर की बात सुन कर हेमवतीने अपने शीलकी रक्षा के लिये प्राण त्याग की इच्छा से गले में पाश लगादिया / परंतु वह पाश हेमवती के गलेमें गीरते ही फुल की माला बन गयी / धर्मात्मा हेमवती ने अपने शीलकी रक्षाके लिये अनेक उपाय किये / इस प्रकार उस महासती का माहात्म्य देखकर भी वह पापी अपनी इच्छा को दबाता नहीं था / उतनेमें चक्रेश्वरी देवी उसको दुष्टात्मा समझकर सतीको सहाय करने को वहाँ आकर खड़ी हो गई। वह देवी कठोर वाणीसे उस विद्याधरका तिरस्कार करने लगी। चक्रेश्वरी देवीने कहाकि हे पापिष्ठ! तुम इस सती हेमवती को क्या जानते नहीं हो ? यदि तुम इसके बारे में जरा भी विरुद्ध बोलोगे तो तुम्हारा महान् अनर्थ होगा / इसके शीलके प्रभावसे तुम बिलकुल भस्म हो जाओगे / यदि तुम इसे भगिनी मानने लगो तो तुम्हारा कल्याण होगा / तुम पापिष्ठ भावसे इसके शील को नष्ट कर रहे हो क्या इस में तुम्हे जरा भी भय नहीं है ? __ चक्रेश्वरी देवी के इस प्रकार फटकारने पर विद्याधर उस हेमवती के चरणों में गिरकर प्रणाम करके बोला कि 'आप मुझे सन्मार्ग 'पर लाईये / आप मेरी भगिनी ही हो। ऐसा कह कर विद्याधरने हर्षपूर्वक अत्यन्त प्रकाशमान दिव्य रत्नों से सेवा करके हार और कुण्डल हेमवती को दिया ओर बाद में हेमवती को विमान में लेकर लक्ष्मीपुर आकर राजा धीर के पास क्षमा मांगकर सुपर्द की। राजा के आगे हेमवती केशील की महत्ता कह कर अत्यन्त गतिवाला वह विद्याघर अपने स्थान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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