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________________ wwwwwww 378 . विक्रम चरित्र प्रत्यक्ष हुए देव कौन हैं ?" . अवधूत ने कहा कि 'सूरियों में अग्रगण्य वृद्धवादि सूरि का मैं सिद्धसेन नामक शिष्य हूँ। किसी कारणवश बाहर निकला हूँ। अनेक देशों में भ्रमण करता हुआ आज इस नगर में आया हूँ। हे राजन्! मेरी और आपकी प्रथम मुलाकात हो चुकी है, मैंने पहली मुलाकात में आपको यह श्लोक भेजा थाःभिक्षुदिदृक्षुरायातस्तिष्ठति द्वारि वारितः।, हस्तन्यस्तचतुःश्लोकः किं वाऽऽगच्छतु गच्छतु // 23 // इस प्रकार के दूसरे चार श्लोकों के द्वारा पहले आप का और मेरा राजसभा में परिचय हो चुका है और यह जो देव प्रत्यक्ष हुए हैं वह देवों के समूह से पूजित श्री पार्श्वनाथजी हैं / ' सूरिजी की बात सुन कर आश्चर्य चकित होकर राजा कहने लगे कि 'इस महादेवके मंदिर में सर्वज्ञ पार्श्वनाथ कैसे प्रकट हो गये ? श्री अवन्ती पार्श्वनाथ का इतिहास ____ महाराजा को श्रीसिद्धसेन दिवाकर सूरीश्वरजीने कहा कि “हे राजन् ! इस मंदिर का पुरा इतिहास सावधान मनसे सुनो-पहेले इस अवन्ती नगर में अत्यन्त धनवान् तथा यशस्वी एक 'भद्र' नामका श्रेष्ठी रहता था। शील आदि गुणोंसे युक्त ‘भद्रा' नामकी इसकी पत्नी थी। उसका 'अवन्तीसुकुमार' नामक पुत्र था, जो रूप में देवोंसे भी बढ़कर था। इसने नलिनीगुल्म विमान का ब्यान श्री आर्यसुहस्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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