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________________ 372 विक्रम चरित्र छुड़ाया तथा राजा से सम्मानित कराया। उधर राजाने अपनी पुत्रवधू. कनकश्री को और उस के लाये हुए सब धन को अत्यन्त उत्सव के साथ अपने आवास स्थान पर मंगवाया तथा अपने पुत्र का धन और बहादुरी देखकर राजा ने नगर में सब जगह नृत्य, गीत, उत्सव आदि कराये। विक्रमचरित्र अपनी तीनों पत्नियों से युक्त होकर आनंद से रहने लगा। सोमदन्त को भी विक्रमचरित्र ने बुलाकर हर्षपूर्वक अपने पिता से बहुत धन दिलाया, तथा अपने हृदय में सोमदन्त के प्रति कुछ भी द्वेष भाव नहीं रखा / क्यों कि उत्तम व्यक्ति दूसरों पर स्नेह रखने वाले होते हैं और अत्यन्त पराभव पाने पर भी हृदय में कुछ द्वेष नहीं रखते। बास को लोग काटते हैं, चीरते हैं और उस में छिद्र करते हैं परन्तु फिर भी वह बाँस ( बंसरी ) के रूप में रह कर मधुर ही बोलता है। - महाराजा विक्रमादित्य विक्रमचरित्र जैसे गुणवान् पुत्र से युक्त होकर सतत न्यायपूर्वक पृथिवी का पालन करने लगा। उसने ध्वजा, तोरण, नृत्य गीत आदि सहित अष्टान्हिका-महोत्सवपूर्वक पूजा व प्रभावना करवाई। जो पुरुष श्रेष्ठ उद्योगी होते हैं, वे लक्ष्मी को अवश्य प्राप्त करते हैं। भाग्य में होगा तो मिलेगा ऐसी बात कापुरुष ही बोलते हैं। दैव-नसीब को छोड़कर अपने आत्म बल से पुरुषार्थ करना चाहिये / यत्न करने पर यदि फल नहीं मिले तो इस में क्या दोष ! | फिर तो विक्रमचरित्र पूर्ववत् अपने मित्र सोमदन्त का सम्मान करने, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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