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________________ 370 विक्रम चरित्र माता है परन्तु उत्तम व्यक्तियों के लिये तो माता जीवन पर्यन्त तीर्थ .. के समान होती है।" विक्रमचरित्र को महल पर ले जाना राजा विक्रमादित्य प्रसन्नचित्त होकर अपने पुत्रको उत्सव के साथ अपने राजमहल में ले आया। विक्रमचरित्र ने प्रथम अपनी माता को प्रणाम किया / फिर शुभमती और रूपवती को मिला, उनको अपने स्वामी को देखकर अत्यन्त हर्ष हुआ। कहा भी हैं कि 'चक्रवाक. सूर्य को, चकोर चन्द्रमा को, मयूर मेघ को, शूर विजय को, सती पतिव्रता अपने पति को, समुद्र चन्द्रमा को तथा माता पुत्र को देखकर अत्यन्त हर्ष प्राप्त करते हैं।' फिर राजाने अपने पुत्र से कहाकि जिस स्त्रीने तुम्हारा सब समाचार बतलाया, उसको आधा राज्य किस प्रकार दिया जाय / तब विक्रमचरित्र ने बतलाया कि 'वह तो वही कनकी है जिसके साथ मैंने लान किया है।' यह सुन कर राजा ने कहा कि 'भीम को मारकर उसका सब धन ले लेंगे / क्यों कि यह अत्यन्त निर्दय है तथा पापिष्ठ और दुष्ट है।' क्यों कि: दुर्जन का दमन करना, सज्जन का पालन करना, आश्रित का पोषण करना, असल में यही सब राजचिह्न हैं / अभिषेक (जलसे सिञ्चन करना), पट्टबन्ध (पट्टी बाँधना) और चामर (हवा करना) यह सब तो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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