________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 365 ____अवन्ती नगरी में पहुंचकर भीम जहाज की सब वस्तुओं को शकटों द्वारा शीघ्र ही अपने घर ले आया तथा एक पृथकू घर में कनकश्री को अपनी स्त्री बनाने की इच्छा से हर्ष पूर्वक रखी। अपने पुत्र को इतने धन और कन्या के साथ आया हुआ देखकर भीमका पिता सूर्यको देखकर कमल प्रसन्न होता है, उसी प्रकार प्रसन्न हुआ। उधर भीम कृत्याकृत्य का विचार छोडकर उस धन में मोहित होकर उस कन्या से विवाह करने के लिये उपाय सोचने लगा / कहा भी है कि “जैसे जन्मान्ध व्यक्ति नहीं देखता वैसे ही कामान्ध व्यक्ति भी कुछ नहीं देखता, मदोन्मत्त भी नहीं देखता और स्वार्थी व्यक्ति दोषों को नहीं देखता / कामदेव क्षण में ही कला कुशल को भी विकल कर देता है, पवित्र व्यक्ति को भी हास्य का पात्र बनादेता है, पण्डित को तिरस्कृत करता है तथा धीर पुरुष को भी नीचे गिरादेता है।" इतने समय तक अपने पति को घर आते न देखकर तथा उसे परदेश में कहीं खोया हुआ या मृत समझ कर शुभमती और रूपमती दोनों अत्यन्त दुःखी होकर राजा विक्रमादित्य से काष्ठभक्षण की याचना करने लगी। उन्हें समझाने के लिए राजा कहने लगा कि 'हे पुत्रवधू ! कुछ समय तक और प्रतीक्षा करो। कदाचित् मेरे और तुमारे पुण्य के उदय से मेरा पुत्र आ जाय, अथवा किसी के मुखसे सम्भव है उसका समाचार मिल जाय / इसप्रकार बार बार समझा कर उसने अपनी दोनों पुत्रवधुओं को रोका / परन्तु वे दोनों राजा से विनय पूर्वक सतत काष्ठ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org