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________________ 360 विक्रम चरित्र से मिलने की ही प्रबल इच्छा है। "विद्वानों ने अपने कुल को पवित्र करने वाले तथा शोक से रक्षण करने वाले को ही सच्चा पुत्र कहा है / "* तीर्थो में स्नान, दान आदि करने से केवल पुण्य का ही लाभ होता है। परन्तु माता पिता की सेवा से प्रयत्न बिना ही धर्म, अर्थ तथा काम की प्राप्ति होजाती है। जननी का स्नेह रूपी वृक्ष प्राप्त करने से यह वृक्ष बिना मूलक होने पर भी सदा अनिर्वचनीय फल देता रहता है। विक्रमचरित्र का पत्नी के साथ रवाना होना राजा कनकसेन ने विक्रमचरित्र को मुक्ताफल, मणि, सुवर्ण तथा घोडे आदि देकर अपनी पुत्री तथा जामाता को बिदा किया / विक्रमचरित्र अपने श्वसुर आदि को प्रणाम कर के अपनी प्रिया के साथ हर्षपूर्वक समुद्र मार्ग से खाना हुआ। रास्ते में भीम कनकश्री के शरीर की शोभा देखकर आश्चर्य चकित होगया और छल से उसको प्रात करने के लिये विचार करने लगा। विषय अधम पुरुष को अपने अधीन कर लेता हैं। सत्पुरुष को नहीं। चमडे की डोरी मंशक को ही बाँध सकती है, हाथी को नहीं / एक दफा भीम वाहन के किनारे खडा होकर कपट पूर्वक कहने लगा कि 'हे वैद्यराज ! इधर समुद्र में * पुनाति त्रायते चैव कुलं स्वं योऽत्र शोकतः। एतत्पुत्रस्य पुत्रत्वं प्रवदन्ति मनीषिणः // 28 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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