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________________ 345 मुनि निरंजनविजयसंयोजित है। उस कन्या को देखने के लिये नगर के अनेक लोग इकट्ठे हो गये। मैं भी उस को देखने के लिये वहाँ रूक गया। इसी लिये मुझे आज आने में देरी होगयी। हे तात ! क्या वह राजकन्या पुनः दृष्टि प्राप्त कर सकती है ?" ___तब वृद्ध भारण्ड कहने लगा, " मैं मास के अंत में जो मलोत्सर्ग करता हूँ, उसको अमृतवल्ली के रस में मिला कर कोई मनुष्य उसके दोनों नेत्रों में एक बार लगा दे तो वह कन्या दिन में भी तारे देख सकती है।" विक्रमचरित्र के नेत्र खुलना रात्रि में उसकी यह बात सुन कर राजपुत्र ने प्रातःकाल में उस पझी का मल लेकर अमृतवल्ली का रस मिलाकर अपने नेत्रों में लगाया। धीरे धीरे वह उसके आंखों में फैला और उसकी दृष्टि खिलने लगी, कुछ समय में वह देखने ला गया / कहा है कि 'मन्त्र रहित कोई भी अक्षर नहीं है। हर एक वनस्पति औषध के उपयोग में आ सकती है / पृथिवी अनाथ नहीं है। परन्तु इन सब को पहचानने वाला तथा विधि जानने वाला ही दुर्लभ है / मन्त्र, तन्त्र, औषधि रत्न आदि सब इस पृथिवी में भरे पडे हैं।" नेत्रों को वह औषध लगाने से दिन में भी तारा देखे एसी तेजस्वी आखें हो गई / फिर राजकुमार ने अपने वस्त्रों को अच्छी तरह से धो लिया, बाद में उस भारण्ड पझी का मल लेकर अमृत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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