________________ * अट्ठाइसवाँ प्रकरण भारण्ड पक्षी व गुटिका का प्रभाव कनकपुर में विक्रमचरित्र जिस वृक्ष के नीचे आकर बैठा व लेटा हुआ था उस वृक्षपर पूर्व समय से ही एक अशक्त वृद्ध भारण्ड पक्षी अपने अनेक पुत्रों के साथ रहता था। प्रातःकाल उसके सब पुत्र दशों दिशाओं में दूर दूर आहार लेनेके लिये चले जाते थे और सायंकाल में वापिस लौट कर अपने पिताको प्रणाम कर के एक एक फल उसे देते थे। उस दिन भी यथासमय सबने आकर उसे फल भेट किये / उसके बाद वह वृद्ध भारण्ड बोला कि 'इस समय यहाँ पर कोई अतिथि है ? वृद्ध भारण्ड का अतिथि तब विक्रमचरित्रने कहा 'हे तात ! यहाँ पर मैं अतिथि हूँ।" तब उसने पूछा “तुम कौन हो?" राजपुत्र बोला " दुखस्थ दीन तथा कृपापात्र मैं अपने कर्म से . यहाँ लाया गया हूँ।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org