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________________ 336 विक्रम चरित्र तुम ऐसा मत बोलो / शीत, ताप, वर्षादि से विदेश गमन अत्यन्त दुष्कर है / इस लिये तुम यहाँ घर पर ही रहो / ' तब सोमदन्त पुनः कहने लगा कि 'जो सुख तथा दुःख में मित्र का त्याग नहीं करता वही सच्चा मित्र कहा जासकता है। जल और दूध की मैत्री देखिये। दूध अपने सब गुण पहले जल को दे देता है, तब जल दूध में गरमी देख कर पहले अपनी आत्मा को ही अग्नि से जलाता है। तब मित्र की आपत्ति देख कर दूध अग्नि में जाने के लिये उत्सुक हुआ। तब जल अग्नि को शान्त कर देता है। सज्जनों की मैत्री इसी प्रकार की होती है। सन्मित्रों का लक्षण सज्जनों ने यही कहा है कि 'सन्मित्र पाप करने से रोकता है, अच्छे कर्म करने में लगाता है, गोपनीय बातों को गुप्त ही रखता है, गुणों को प्रकट करता है, दुःख प्राप्त होने पर भी त्याग नहीं करता, और समय पड़ने पर धन आदि की सहायता करता है।' सोमदन्त सहित परदेश गमन ___ इस प्रकार का उसका दृढ़ आग्रह देख कर विक्रमचरित्र उसी रात्रि में चुपचाप सोमदन्त के साथ नगर से बाहर निकला / नगर, ग्राम, नदी, पर्वत, वन आदि को देखता हुआ वह विक्रमचरित्र अपने मित्र के साथ वन में एक सरोवर के समीप पहुँचा / तृषातुर होने के कारण उस सरोवर में जल पीकर विक्रमचरित्रं अपने मित्र के साथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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