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________________ प्रकरण ग्यारहवाँ . . . . पृष्ठ 75 से 100 तक . सुकोमला के पूर्व भव . अब वाचक महाशय को विदित हो कि महाराजा विक्रमादित्य, अग्निवैताल, भट्टमात्र, स्त्रीवेष में और मदना तथा कामकेली यह पाँचो रूपश्री के वहाँ आये है और सुकोमला के पास पहुँचना चाहते है। अब यही बताया जाता है कि वे लोक कौनसा रास्ता अंगीकार करके अपने प्राण बचाते है और नरदेषिणी सुकोमला का अभिमान चूरचूर करके कीस तरह उसको स्वाधीन करके उसके साथ विक्रमादित्य का विवाह होता है यह रोमांचक कथा अब आप लोकोके मनोरंजनार्थ इस प्रकरण में बताई जाती है राजकुमारी सुकोमला 'रूपश्री' के आने के विलम्ब में इधर-उधर टहल रही थी, उतने ही में रूपश्री उपस्थित हुई और आने में विलम्ब का कारण पूछा गया। मौका मिलने पर कौन एसा होता है जो सच बात पर स्वार न हो / अवन्ती महाराजा की कुशल नर्तिकाऐ आई है एसा सुनते ही सुकोमलाने भी आये हुए अनायास अवसर का सहर्ष स्वागत करने की इच्छा से पाँचों नर्तकियों को बुलाई और यह लोग भी उन के पास पहुँचने का तरीका शोच ही रहेथे उनको भी अनायास मौका मिल जाने से परस्पर निश्चय कर के विक्रमादित्य ने वेष परिवर्तन करके विक्रमा नाम रक्खा और उन्होने मदना और कामकेली के नृत्य पर गाना स्वीकार किया, (भट्टमात्र) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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