________________ 306 विक्रम चरित्र राजा की कन्या को नीरोग करो / ' इस प्रकार जब बार बार मालिन ने कहा तब आनन्दकुमार राजा के सेवकों के साथ राजमहल में गया / राजा उसे देखकर प्रसन्न हुआ और बोला कि 'हे कुमार ! मेरी कन्या को नीरोग करो / इसके बदले में मैं तुमको अपनी मुंह मांगी वस्तु प्रदान करूँगा।' . ___राजा की यह बात सुनकर आनन्दकुमार ने कहा कि हे राजन् ! तुम्हारी कन्या को, जिसे मैं दूंगा, उसका स्वीकार मेरी आज्ञा से तुम्हारी कन्या करे, अच्छे कुल में उत्पन्न एक कन्या आठ गांवों के साथ जिसको मैं दिलाऊँ, उसको यदि दो और सात योजन पर्यन्त पृथिवी एक मास के लिये मुझको दो तो मैं आप की इस कन्या की आखों को निरोग कर दूंगा / इस पृथ्वी में गिरनार की वह भूमि भी आती थी, जिस पर लोग अन्न दान के लिए आते थे। आनन्दकुमार की बात सुन कर राजा अपनी पुत्री के पास गया तथा बोला कि 'आनन्द कुमार ने पटह का स्पर्श किया है / वह मेरे समक्ष हाजिर है तथा कहता है कि 'जिस कुमार को मैं कन्या दिलाऊँ उसको मेरी आज्ञा से यदि वह स्वीकार करे, तो मैं उस कन्या को नीरोग कर दूं।' राजा की बात सुनकर उस कन्या ने कहा 'हे पिताजी ! आपकी आज्ञा से ऐसा ही हो। क्योंकि पिता द्वारा दिये हुए वर को कन्या हर्षपूर्वक अङ्गीकार करती है, यह उत्तम आदर्श कन्याओं के लिये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org