________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 283 स्थान पर चले गये / विक्रमचरित्र भी संध्या समय में राज्य की अश्वशाला में गया। वहाँ जाकर अश्वशाला के अध्यक्ष से विक्रमचरित्र ने पूछा कि 'हे अश्वपाल ! कौन कौन से घोड़े किस प्रकार के हैं ? वह मुझको वर्णन कर बतलाओ। अश्वपाल कहने लगा-'ये घोड़े सिन्धु देश के हैं, ये कम्बोज देश के हैं, इतने घोडे पंच भद्र नाम के हैं। कोकाह, खुङ्गाह, कियाह, नीलक, बोल्लाह, खाङ्गाह, सुरुहक, हलीहक, हालक, पाटल इत्यादि विविध देशों के तथा अनेक जाति के उत्तम घोडों से राज्य की अश्वशाला अत्यन्त शोभायमान है। इन घोडों से भी ये घोडे अधिक वेगवान् हैं / साथ ही साथ मनोहर भी हैं। इनसे ये सब घोड़े और भी उत्कृष्ट हैं। अश्वपाल की बात सुनकर विक्रमचरित्र ने पुनः पूछा कि ' और भी कुछ अन्य घोड़े हैं क्या ?' ___अश्वपाल ने कहा कि वहाँ दो घोड़े हैं, इनका नाम वायुवेग तथा मनोवेग है / ये सब से अच्छे लक्षण वाले हैं। उन दोनों घोडों को देखकर अपने चित्त में चमत्कृत होता हुआ विक्रमचरित्र विचारने लगा कि 'मुझ को पांच ही दिन में शीघ्रता से सौ योजन जाना है, इसलिये मनोवेग घोडे के बिना कार्य सिद्ध नहीं होगा।' इस प्रकार विचार कर सब अश्वों को देख कर विक्रमचरित्र लौट कर अपने स्थान पर आगया / रात्रि में अदृश्य शरीर से चुपचाप अश्वशाला में प्रवेश किया और मनोवेग अश्व पर चढ़ कर सब आभूषणों से भूषित होकर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org