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________________ 212 विक्रम चरित्र ... इधर वेश्याओं दीपक आदि सब सामग्री लेकर नृत्य करने के लिये उस सेठ के समीप उपस्थित हुई और सार्थवाह से ही पूछा कि 'सेठ कहाँ है ? और अन्य सब व्यक्ति कहाँ गये हैं ? ___वेश्याओं के पूछने पर सेठ बोला कि दूसरे सब लोग अपने अपने कार्य के लिये नगर में चले गये हैं। मैं स्वयं ही सार्थवाह हूँ। तुम लोग इस समय मेरे आगे अच्छा नृत्य करो। मैं तुम लोगों को पुरस्कार में बहुत सा धन दूंगा।' फिर उन वेश्याओं ने क्रमशः अच्छा नृत्य किया। तब उस सार्थवाह ने उन वेश्याओं को अच्छे अच्छे वस्त्र पुरस्कार में दिये। अतः प्रसन्न होकर उन वेश्याओं ने पुनः सार्थवाह के आगे अनेक प्रकार का नृत्य-गान किया। दूसरी बार नृत्य के अन्त में वह सार्थवाह बोला कि 'यदि तुम लोगों की मद्य पीने की इच्छा हो तो, मैं इस समय तुम लेगों को पीने लिये मद्य दूँ।' तब उन वेश्याओं ने कहा कि 'हमें मद्य से अच्छी कोई दूसरी चीज नहीं मालूम होती / इसलिये हमारे जैसे मनुष्यों के लिये तो मद्य अत्यन्त अभीष्ट वस्तु है।" . वेश्याओं की यह बात सुनकर उस सार्थवाह ने उन वेश्याओं को बहुत तेज मद्य पीने के लिये दिया। तथा उन वेश्याओं ने मधुर ध्वनि करने वाले चूर्ण से मिश्रित मद्य का पान किया तथा अत्यन्त मधुर ध्वनि से गान करने लगी, जो सुनने में कानों को अत्यन्त सुख देता था। उन वेश्याओं के मधुर स्वर का गान सुन कर तथा मनोहर नृत्य देखकर वह सार्थवाह प्रसन्न होकर वस्त्र तांबुलादि युक्त योग्य Jain Education International www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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