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________________ 182 विक्रम चरित्र महल में भी प्रवेश कर गया, अतः भय के मारे किसी भी व्यक्ति ने पान का बीडा नहीं उठाया / तब मतिसार मामक विक्रमादित्य के मुख्य मन्त्री ने अच्छे अच्छे योद्धाओं के प्रति कहा कि 'जो राजा का कार्य सिद्ध करता है, वही सच्चा सेवक है, जो युद्ध के समयमें राजा के आगे खड़ा है, नगरमें सर्वदा राजा के पीछे पीछे चले और जो राजा के घर पर उपस्थित रहे, वह राजा का प्रिय होता है। राजा के मन की बात जानने वाला, अच्छे स्वभाव वाला, अल्प बोलने वाला, कार्य करने में अतिशय कुशल, प्रियवचन बोलने वाला, राजा के कहने के अनुसार बोलनेवाला ही राजा का पूर्ण भक्त है, तथा वही प्रशस्त भृत्य प्रशंसनीय सेवक गिना जाता है। बिना भृत्य के राजा शोभा नहीं पाता। दोनों का व्यवहार परस्पर के सम्बन्ध से ही होता है / राजा प्रसन्न होने पर भृत्य को काफी धन देकर उसका सत्कार करता है / नौ कर सत्कार पाने के लिये ही प्राणों को देकर भी राजा का उपकार करता है। सिंहकी चोर पकडने की प्रतिज्ञा e IMLODILLION.Om mmmmmmmmURIDIHALINITAL MIMIDDDDITIm IIIIIIIIITHLIINTIMROHARDHARTHATANIHIDuTuuuN MIDDITITHHTHIMilim Dasi. 1:::LAHILAIMERIE BHATTumumniruitmn ALL TITLithin FFAR A NILITIDIALMALLL Cm Immmmmmmmm Ammmmmmm Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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