________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित गर्भ पालन व पुत्र उत्पत्ति ___इसलिये सुकोमला इन सब वस्तुओं से निवृत्त रह कर अपने गर्भ का पालन करने लगी। समय पूर्ण होने पर, प्रभात काल में जैसे पूर्व दिशा सूर्य को जन्म देती है, वैसे ही उसने अच्छे दिन तथा शुभ मुहूर्त में अतीव सुन्दर बालक को जन्म दिया। दौहित्र के जन्म होने पर राजा शालिवाहन ने अच्छे अन्नपान के दान से सज्जनों का सत्कार किया और उस बालक का 'देवकुमार' नाम रखा। पांच धात्रियों को उसके पालन पोषण का कार्य सौंप दिया / उन धात्रियों से पालित चित्रशाला के योग्य अत्यन्त सुन्दर अपने बालक देवकुमार को देख कर सुकोमला अति प्रसन्न रहती थी। उछलना, कूदना, हँसना आदि बाल चेष्टा से बालक जिस स्त्री की गोद में बैठता है, वह ही स्त्री संसारमें अत्यन्त सौभाग्यशाली गिनी जाती है। देवकुमार का बड़ा होना व पढने जाना। ___. जब देवकुमार कुछ बड़ा हुआ तो राजा ने विचार किया कि- वह माता-पिता शत्रु हैं, कि जिसने अपने पुत्रको पढ़ाया न हो। जैसे हँस समूह में बक शोभा नहीं पाता वैसे ही विद्वानों की सभा में मूर्ख व्यक्ति शोभा नहीं पा सकता / पिता से ताडित पुत्र, गुरु से ताडित शिष्य तथा घन (हथौडा) से आहत सुवर्ण, यह तीनों संसार के सब स्थानो में शोभा पाते हैं / ' अतः राजा ने एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org