________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 159 माता-पिता का आश्वासन _ अपनी पुत्री को आश्वासन देने के लिये उस के माता-पिता बोले कि 'यदि तुम्हारा पति दूर भी चला गया होगा, तो भी वह शीघ्र ही आ जायगा / यदि तेरे पति नहीं मिले तो तू यहाँ रह कर धर्म ध्यान कर और उस में मन लगा। क्योंकि “जिनेश्वर की भक्ति से तथा उन की पूजा करने से जितने उपद्रव हों वे सब स्वयं नष्ट हो जाते हैं। जितनी मन की व्यथाओं और विघ्न लताओं हैं, वे सब कट जाती हैं। मन सदैव प्रसन्न रहता है। किसी प्रकार का दुःख मन में नहीं होता।" क्योंकि-- "जिसका पिता योगाभ्यास है अर्थात् पिता के समान ही जो योगाभ्यास की सेवा करता है, विषय वासना से विरक्ति ही जिस की माता है अर्थात् माता के समान ही जो विषय विरक्ति में आदर रखता है, विवेक जिसका सहोदर है अर्थात् भाई के समान ही जो विवेक को अपना सहायक मानता है, यानी विवेक पूर्वक ही सब कार्य करता है तथा प्रति दिन किसी विषय की अनिच्छा ही जिस की बहिन है, प्राण प्रिया स्त्री के समान जिस क्षमाकी है, विनय जिस को पुत्र के समान है, उपकार करना ही जिसका प्रिय मित्र है, वैराग्य जिस का सहायक है और जिस के लिये उपशम-शान्ति ही अपना घर है उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः / मनः प्रसन्नतामेति पूज्यमाने जिनेश्वरे // 6 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org