________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित हुए देखा तो वह उसे मारने के लिये दौडा। परन्तु विक्रमादित्य अपनी चालाकी से भाग गया। और चोर उस के पीछे पीछे दौड़ने लगा। जब विक्रमादित्य ने देखा कि वह चोर मेरे पीछे दौड़ रहा है तब वह कृष्ण नाम के किसी ब्राह्मण के घर में प्रवेश कर गया। उसी समय उस ब्राह्मण की गाय को प्रसव हुआ और बीमार पड गई। गाय कदाचित् मर न जाय इस डर से राजा विक्रमादित्य पीपल के वृक्ष पर चढगया। उसी समय ऊपर से राजा की तरफ एक बड़ा विषधर काला नाग आ रहा था। उधर चोर भी उस परदेशी को मारने के लिये घर के बाहर तैयार खडा था। इतने में वह ब्राह्मण जग गया और घर बाहर आया। तब आकाश में मृगशिरा नक्षत्र के वामभाग में मंगल को देखकर अपनी पत्नी से बोला कि 'हे पत्नी! उठो! उठो !! / शीघ्रता से दीपक जलाओ। क्यों कि राजा अभी मृत्यु के समान त्रिदोष में पड़ गया है। उसकी शान्ति के लिये मैं शीघ्र ही होम, मन्त्र, तन्त्र आदि क्रिया करूँगा। जिस से शीघ्र ही राजा का कल्याण होगा / क्यों कि पञ्चतारा ग्रहके दक्षिण में चंद्रमा हो, तो बड़ा उपद्रव होता हैं, मंगल हो, तो राजा की मृत्यु होती है, शुक्र हो तो लोगों का क्षय होता है, बुध हो तो रस का क्षय होता है, बृहस्पति हो तो जल का क्षय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org