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________________ श्रीवल्लभीपुरकी ओर पूज्यपाद गुरुदेवका विशाल परिवारके साथ विहार हुआ, क्रमशः वि. सं० 2000 का चातुर्मास स्थंभनतीर्थखंभातमें तथा वि० सं० 2001 और 2002 का यह दोनो चातुर्मास अमदावाद हुए / इन चारों चातुर्मासोमें पूज्य गुरुदेवकी शुभ निश्रामें जिनमन्दिरप्रतिष्ठा आदि शासनप्रभावना के अनेकानेक चिरस्मरणीय कार्य हुए जिसकी निराली नेांध आवश्यक है. / वि० सं० 2002 की सालमें अतिप्राचीन महाप्रभावक श्रीशेरीसाजीतीर्थकी प्रतिष्ठा बडी धामधूमसें पूज्य शासनसम्राट गुरुदेवके परम पवित्र हस्त कमलोसे हुई। ___ मैंने महुवा, खंभात्त और अमदावाद के दो मीलकर चारें चातुर्मास शासनसम्राट् परमोपकारी परम पूज्य गुरुदेवकी पवित्र निश्रामें किये, तथा महुवामें पांच उपवास की और खंभातमें छे उपवासकी तपस्या गुरुकृपासे मेरे पूर्ण आनंदसे हुइ और इन चारों चातुर्मासोमें विविध ग्रन्थोका वाचन एवं श्री उत्तराध्ययनसूत्रके योगोद्वहन तथा भक्ति-वैयावच्च आदि स्व आत्माको हितकारी अनेक शुभ प्रवृत्तियाँ हुई - इसके लिये मैं परम पूज्य गुरुदेवका अत्यन्त ऋणी हूं। इससे यह अनुवादका काम मनमें अभिलषित ही रहा। ' .. . वि० सं० 2001 में पू० आ० श्रीविजयोदयसूरीश्वरजी महाराजश्रीके पास श्रीकेशरीयाजी महातीर्थ और श्रीराणकपुरजी महातीर्थकी शीघ्र यात्रा होवे इस आशयसे अमुक मर्यादा रखकर अभिग्रह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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