________________ 100 विक्रम चरित्र के रूप में मेरा जन्म हुआ। एक दिन आदिनाथ भगवान के मन्दिर की दीवार पर शुक का चित्र देख कर मुझे जाति स्मरण ज्ञान हो आया और पिछले सातों भवों का सब वृत्तान्त स्मरण आ गया / तब से 'हे विक्रमा ! मुझे पुरुषों के साथ स्वभाविक वैर हो गया है क्योंकि सातों भवों में मुझे पुरुष जाति से अत्यन्त कष्ट एवं विटंबना प्राप्त हुई थी।' "प्राणियों को पूर्व जन्म में अपने किये हुए कर्म के अनुसार सुख, दुःख, गर्व, द्वेष, अहंकार एवं सरलता आदि शुभ और अशुभ फल प्राप्त होते हैं।" तव नर्तकी विक्रमा बोली कि 'हे सुन्दरी ! तुम जो कहती हो सो सच है, क्योंकि जिसके प्रति जो द्वेप करता है उसके प्रति उसको भी द्वेष होना स्वभाविक है / ' इसके बाद राजपुत्री सुकोमला को विक्रमा ने मनोहर गीत गान सुनाया / राजपुत्री ने चित्त प्रसन्नकारी गाना सुन कर एक अमूल्य मणि देकर सूर्योदय काल में विदा कि। पाठकों को सुकोमला के नरद्वेषिणी होनेका कारण ज्ञात हो गया। अब सुज्ञ पाठकों को अगले प्र - किस चालाकी से विक्रमादित्य सुकोमला के साथ विवाह करता है पर बताया जायेगा / +सुखदुःखमदद्वेषाऽहंकारसरलतादयः / सर्व शिष्टमशिष्टं च जायते पूर्वकर्मतः // 222 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org