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________________ विक्रम चरित्र मूले आदि कंद का-भक्षण करना।" और भी सुनिये “पुत्रका मांस खाना अच्छा है किन्तु कन्दमूल का भक्षण करना अच्छा नहीं। क्योंकि कन्दमूल के खाने से नरक गति तथा त्याग से स्वर्ग गति मिलती है।"रे और भी उदाहरण सुनिये मार्कण्डेय महर्षि ने कहा है कि "सूर्यास्त के बाद जल रुधिर के समान और अन्न मांस के समान होता है।" 3 ___इस तरह कई दृष्टान्त दे कर मैंने पतिको समझाया किन्तु वह दुष्ट एक न माना और पहले की तरह ही जीव हिंसा आदि में आसक्त रहा। एक दिन वह कहीं से एक अच्छी सी साड़ी ले आया किन्तु बार बार मांगने पर भी उसने मुझे नहीं दी। इस तरह उस दुरात्मा ने मेरे कोई मनोरथ पूर्ण नहीं किये और मैं सारी उम्र अपने मनोरथों की पूर्ति के बिना दुःखी ही बनी रही। अतः दुर्ध्यान में मरने से मैं मलयाचल के वन में छठे भवमें शुकी हुई। वहां अपने पति शुक के साथ बड़े बड़े जंगलों में घूम कर अच्छे अच्छे फल खाती हुई सुख पूर्वक मैं मेरा समय बीताती थी। 1 चत्वारो नरकद्वारा, प्रथमं रात्रिभोजनम् / परस्त्रीगमनं चचं, सन्धानानन्तकायिके // 201 // 2 पुत्रमांसं वर भुतं, न तु मूलकभक्षणम् / भक्षणान्नरकं गच्छेद् , वर्जनात् स्वर्गमाप्नुयात् // 202 // 3 अस्तंगते दिवानाथे, आपो रुधिरमुच्यते / अन्नं मांसल प्रोतं, मार्कण्डेन महर्षिणा // 203 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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