________________ अथ द्वितीय सर्ग दसवाँ प्रकरण नरद्वेषिणी एक दिन अवन्ती ( उज्जयिनी) नगरी में महाराज विक्रमादित्य देव-गुरु का स्मरण कर नित्य कृत्य से निवृत्त होकर राज-सभा में पधारे / वे राज-सभा के मध्य भाग में स्थित सुन्दर सिंहासन पर विराजमान हुए / उनके शरीर की कान्ति अद्भुत थी। विद्वानों, सरदारों और सेठ साहुकारों से राज-सभा अच्छी तरह सुशोभित थी / वहाँ महाराज न्याय कर रहे थे। राज्यकार्य सम्बन्धी चर्चा हो रही थी। राजसभाम नाईका आगमन इसी बीच में एक नाई मनुष्य-प्रमाण सूर्य सदृश प्रकाशमान एक मनोहर अईना लेकर आया / और राज-सभा के मध्यभाग में वह देह प्रमाण आईना महाराज विक्रमादित्य के सामने इस ढंग से रखा कि महाराज के संपूर्ण शरीर का प्रतिबिम्ब अच्छी तरह दिखाई दे / अपने शरीर का संपूर्ण सुन्दर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org