________________ विक्रम चरित्र चारिणी तथा विचारमें चतुरा ऐसी पत्नी किसी पुण्यशाली को ही अपने पुण्य के बल से प्राप्त होती है / " और भी कहा है:---. . . ___" कुटुम्बियों में धर्म की धुरा समान, कुटुम्ब की क्षीणता (आपत्तिकाल ) में भी समान बुद्धि रखनेवाली, विश्वास में मित्र समान, हित-चिन्तन में वहन समान, लज्जा करने में कुलवधू के समान, व्याधि और शोकावस्था में माता के समान सेवा करनेवाली और धैर्य देने वाली और शय्या पर कामिनी, तीनों लोक में मनुष्यों के लिए ऐसी पत्नी के समान कोई बन्धु नहीं है / "+ गुणागार, लोभ रहित, गंभीर, राजभक्त, बुद्धिमान् तथा नीतिज्ञ भट्टमात्र उनका प्रधान मन्त्री राज्य कार्य में धुरंधर था / तथा अपने साहस से वशीभूत अग्निवेताल असुर कठिन से कठिन सब कार्यों में उनको साथ देता था। इस प्रकार भट्टमात्र तथा अग्निवेताल आदि तथा कुटुम्बसे युक्त राजा बड़े ऐश्वर्य के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। इस तरह सुखपूर्वक महाराज विक्रमादित्य एक दिन आराम भवन में बैठे थे। उस समय भूतकाल के अवन्तीपति बड़े + आदौ धर्मधुरा कुटुम्बनिचये क्षीणे च सा धारिणी, विश्वासे च सखी हिते च भगिनी लज्जावशाच्चस्नुषा / व्याधौ शोकपरिवृते च जननी शय्यास्थिते कामिनी, त्रैलोक्येऽपि न विद्यते भुवि नृणां भार्यासमो बान्धवः // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org