________________ परिश्रम लेकर यह अनुवाद तैयार किया है। अतः हमें पूर्ण विश्वास है कि यह अनुवाद सर्वत्र उपयोगी सिद्ध होगा, क्योंकि एक तो इसकी भाषा हिन्दी है और दूसरे इसका विषय सर्वग्राही रोचक कथा का है। इसके अतिरिक्त आज तक इस विक्रमचरित्र का पूर्ण अनुवाद किसी भी भाषामें प्रगट नहिं हुआ। प्रथमभागमें प्रथम सर्ग से सातमा सर्ग तक का अनुवाद का समावेश किया गया है, दूसरे भागमें आठवें सर्गसे बारवा सर्गमें मूल चरित्र पूर्ण होगा, बाद में ' ग्रंथमाला' की उमेद है कि महाराजा विक्रमादित्यके जीवनके साथ संबंध रखनेवाली सिंहासनबतीसी और वैतालपच्चीशी भी तैयार करें किन्तु व भाविकालकी अभिलाषा भवितव्यता के उपर छोड़कर कथन पूर्ण करते हैं। . . . धन्यवाद . साहित्यप्रेमी प. पू. मुनिवर्य श्रीनिरंजनविजयजी महाराजश्री के सदुपदेशसे बम्बईनिवासी शेठ श्री खेता जी धन्नाजी की पेढीवाले शेठश्री चुनीलाल भीमाजी दादईवालेने वि. सं. 2005 में रु. 200) प्रथम देकर विक्रमचरित्र को छपवाने की शुरूआत कराई हैं इसलिये वे धन्यवाद के पात्र है, साथ ही साथ शेठश्री समरथमलजी केसरीमलजी को भी धन्यवाद दिया जाता है जिन्होने आगेसे रुपये 125 दिये है। तथा जावालनिवासी श्री ताराचंद मोतीजी, श्री रीखवदास खीमाजी तथा श्री मगनलाल कपूराजी आदि धर्मप्रेमी श्रावकोने भी यह कार्यमें . सहायता करनेकी अभिलाषा बतलाई है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org